बुधवार, 31 दिसंबर 2008

आइये नव वर्ष का रिजॉल्यूट (resolute – कृतसंकल्पीय) विचार मन्थन करें।(शीर्षक वाक्य साभार - ज्ञानदत्त जी .)

आज अल्लसुबह ज्ञान जी ने नववर्ष संकल्प लेने की सुधि दिलाकर सहसा ही भय का संचार किया कि अरे मैंने भी तो नव वर्ष का सकल्प लेना है( यह मैंने वाली स्टाईल व्याकरणीय दृष्टि से ग़लत है इस पर ध्यान दें ! )और समय कितने तेजी से बीत रहा है ! तो मैं भी क्यूं न फटाफट कुछ संकल्पों को यहाँ गिना दूँ (जो वस्तुतः मैंने ले रखे हैं ) -ताकि सनद रहे और जावाबदेही (ख़ुद के प्रति ) भी तय हो सके .पहले तो यह स्वीकारोक्ति कि अभी दशक डेढ़ दशक पहले तक मुझे भी नववर्ष सकल्प लेने देने की कोई जानकारी या प्रतिबद्धता नही थी ! दरअसल यह पश्चिम और अंगरेजी संस्कृति का अनुष्ठान है .हम मौन संकल्प लेने के अभ्यस्त रहे हैं और वहाँ इसे शोर शराबे के साथ लेने का रिवाज है .अब चूंकि मैं भी मध्यमार्गी बनता जा रहा हूँ अतः थोड़े मौन और थोड़ी मुखरता के साथ अपने ये नववर्ष संकल्प आपसे साझा करता हूँ , प्लीज ध्यान दें ,मैं गंभीर हूँ -
तो ये रहे मेरे नववर्ष संकल्प और यथावश्यक संक्षिप्त व्याख्या -
१-साईब्लाग पर अभी भी लंबित पुरूष पर्यवेक्षण यात्रा को पूरी करना जो पिछले वर्ष का ही एक संकल्प था लेकिन "ओबियस "कारणों से पूरा न हो सका ।
२-इस ब्लॉग पर चिट्ठाकार चर्चा में कम से कम दो दर्जन विख्यात /कुख्यात चिट्ठाकारों की खबर लेना -यह ख़ुद को भी चर्चा में बनाए रखने का एक आजमूदा नुस्खा है और बेशर्मी की सीमा तक आत्मप्रचार का जरिया भी .कौन अपने को व्यतीत /विस्थापित हुआ देखना चाहता है ? पर मैं जानता हूँ कि मेरा यह क्यूट सा ,प्यारा प्यारा सा मासूम चिट्ठाजगत मेरी इस धृष्टता की नोटिस नही लेगा .इससे मुझे एक फायदा यह भी होगा कि नए और नामचीन दोनों किस्म के चिट्ठाकार मेरे अदब में रहेंगे .कौन इस नश्वर जग में प्रशंसा नही पाना चाहता ? पर इसी आम मनोवृत्ति की आड़ लेकर मैं लोगों कीअपने नजरिये से खिंचाई का मौका भी नही छोडूंगा -संदेश -अपना आचरण संयमित रखें !
५-नारी ब्लागों के प्रति सहिष्णुता बरतूंगा और उनकी विजिट करूंगा और पूर्वाग्रहों को त्याग कर टिप्पणियाँ भी करूंगा ।
६-चार्ल्स डार्विन जिनकी यह (२००९) द्विशती है पर एक श्रृंखला साईब्लाग पर करूंगा ।
७-साईंस ब्लागर्स असोशियेसन की एक मीट वर्षांत तक करा सकूंगा ।
८-विज्ञान कथा के अपने नये संग्रह को प्रकाशित करूंगा और कुछ कहानियां अपने इस विषयक ब्लॉग पर पोस्ट करूंगा ।
९-कुछ पुराने प्रेम प्रसंगों की याद करूंगा और उनके पुनर्जीवित होने की संभावनाओं की टोह लूंगा और कुछ नए संभावनाओं का भी उत्खनन करूंगा -यह मैं बार बार कहता हूँ कि जीवन को सहज बनाए रखने के लिए कुछ रागात्मकता और मोहबद्ध्ता बेहद जरूरी है -आप माने या न मानें ! मेरी इस बात को मेरे कुछ पुरूष मित्र तो थोड़े ना नुकर के बाद मान भी लेते हैं (कितने सहिष्णु हैं वे !) पर महिलायें बहुत कंजर्वेटिव(बोले तो असहिष्णु ) हैं- इस बात /मामले में . काश मैं भी अपने कुछ नामचीन मित्रों की भांति विदेश जीवन जी रहा होता तो तस्वेदानिया फिल्म के क्षणों को भी जीने का सहज ही सौभाग्य मिल जाता !
१०-ब्लागिंग की गतिविधि को थोड़ा संयमित करूंगा ताकि जीवन के दूसरे पहलुओं के साथ न्याय कर सकूं ।
११-तस्लीम पर पहेलियाँ बुझाता रहूँगा !
यह ग्यारह की संख्या शुभ है और ज्यादा भी क्यों इन्हे पूरा भी तो करना है .
आप सभी को नववर्ष मंगलमय हो !

मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

दिनेश राय द्विवेदी जी -एक असाधारण चिट्ठाकार !

आईये इस असाधारण चिट्ठाकार को लेकर आपसे कुछ अनौपचारिक सी चर्चा आज हो ही जाय .औपचारिक प्रोफाईल तो आप यहाँ देख ही सकते हैं जो किसी को भी सहज ही प्रभावित करता है -मैंने इन्हे ख़ास तौर पर अनवरत पढ़ कर और इनकी टिप्पणियों को पढ़ पढ़ कर अनवरत जाना समझा है .द्विवेदी जी बहुत ही अध्ययनशील ,विनम्र व्यक्तित्व के धनी हैं. क़ानून और लोक जीवन ,संस्कृति तथा परम्पराओं पर इनकी पैनी नजर है और इन विषयों पर इनकी प्रोफेसनल दखल है .मैं इनके ज्ञान से तब चमत्कृत रह गया था जब साईब्लाग पर चल रहे पुरूष पर्यवेक्षण की अगली कड़ी का भी इन्हे पूर्वाभास हो जाता था .मैं दंग रह जाता था की अपने प्रोफेसन से भी इतर विषयों पर इनका इतना व्यापक अध्ययन है .एक मजेदार वाक़या है -मैं खल्वाट खोपडी के कई जैव व्यावहारिक पक्षों की चर्चा शुरू कर चुका था और इस सन्दर्भ में जाहिर है दिनेश जी भी संवेदित हो रहे थे और उनकी संवेदना का इंट्यूशन मुझे भी हो रहा था और इसे लेकर मैं थोडा असहज हो चला था -आश्चर्यों का आश्चर्य की इन्होने मुझे मेल करके हरी झंडी पकडा दी कि " मुझे पता है कि आप अब गंजे लोगों के बारे में उस अध्ययन का हवाला देने वाले हैं जिसके मुताबिक गंजेपन और सेक्स सक्रियता में समानुपातिक सम्बन्ध देखा गया है " मैं स्तब्ध रह गया ..जब ऐसी विज्ञ ,अधयनशील विभूतियाँ हिन्दी चिट्ठाजगत में मौजूद है तो फिर इसके भविष्य के प्रति सहज ही आश्वस्ति का भाव जगता है .तब से मैंने इनका लोहा मान लिया और पूरी गंभीरता और एक सहज आदर भाव से इन्हे लेने लगा ।
इनकी नही पर मेरी ही एक खामी है -मैं कुछेक बातों को लेकर अचानक असहज सा हो जाता हूँ -बोले तो शार्ट टेम्पेर ! और लाख चाहते हुए इस दुर्गुण से मुक्त नही हो पा रहा .अब जैसे कोई किसी प्रायोजित मामले को सायास उठा रहा हो ....किसी मंतव्य को लेकर -महज अपना उल्लू सीधा करने के लिए आपको बना रहा हो या फिर जो सहज नही है ऐसा आचरण कर रहा है .तो मैं ऐसे क्षणों में तुरंत असहज हो जाता हूँ .और ऊट पटांग कह देता हूँ .बाद में पछताता भी हूँ -मेरी यह समस्या यहाँ के आभासी जीवन में भी बनी हुयी है .निश्चय ही द्विवेदी जी ने अपनी कुछ टिप्पणियों पर मेरी प्रति टिप्पणियों का दंश सहा होगा मगर बड़प्पन देखिये कि उन्हें भी निहायत सजीदगी और शिष्टता से ग्रहण कर लिया .-कुछ उसी लहजे में कि 'ज्यो बालक कर तोतर बाता ,सुनहि मुदित होयं पितु माता "
मैं यह देखता हूँ कि मेरे उनकी उम्र में बस यही कोई बमुश्किल दो साल का अन्तर है पर अनुभव ,ज्ञान और गंभीरता में मैं उनके आगे कहीं भी नही दिखता -इससे मुझे कोफ्त भी होती है -नाहक ही अब तक का जीवन वर्थ में गवा डाला !
बहरहाल यह भी तो बता दूँ कि मुझे द्विवेदी जी की किन बातों से आरम्भिक चिढ /खीज हुयी थी जो निसंदेह अब नही है .उनका नारियों के प्रति अधिक पितृत्व -वात्सल्य भाव का प्रदर्शन ! यह सहज ही होगा पर मुझे यह असहज लगा है -एक तो नर नारी की तुलना के प्रसंगों से मैं सहज ही असहज हो जाता हूँ और मेरा स्पष्ट /दृढ़ मत रहा है और उत्तरोत्तर मैं इस पर और दृढ़ ही हुआ हूँ कि नर या नारी में कोई किसी से कम या बेसी नही है उनके अपने सामजिक -जैवीय रोल हैं और उनके अनुसार वे दोनों फिट हैं -मगर ब्लागजगत में इस मुद्दे को लेकर भी झौं झौं मची रहती है और इनसे जुड़े मुद्दों पर द्विवेदी जी सदैव एक ही पक्ष की ओर लौह स्तम्भ की तरह खड़े दिखायी देते हैं .अरे भाई हम भी बाल बच्चे वाले हैं और कभी भी घर आकर देख महसूस लीजियेगा कि अपने दूसरे हिस्से के प्रति मेरा भी कितना सम्मान समर्पण है .इसे कहने और दिन्ढोरा पीटने से क्या होगा ? (यह वाक्य द्विवेदी जी को लेकर नही है )
नारी ब्लॉगों ने इन मुद्दों को लेकर जो धमा चौकडी मचाई है कि ब्लॉग जगत असहज सा हो गया है बल्कि अब तो यह असहजता स्थायी भाव लेती जा रही है .मगर दाद देनी होगी द्विवेदी जी की कि इन वादों पर क्या मजाल कि वे कभी नारी झंडाबरदारों को भी आडे हाथों लें कि क्या उधम मचा रखा है तुम लोगों ने ? पर नहीं बड़े बुजुर्ग होकर भी इन्होने उन्हें सदैव शह दिया है ,देते रहते हैं और अब तो इन्ही के कारण ही मैं भी मुंह बंद कर चुका हूँ .क्योंकि निसंदेह द्विवेदी जी की इन मामलों की समझ और देश के क़ानून का ज्ञान मुझसे कहीं बहुत अधिक है -इसलिए कहीं अपने में ही कुछ ग़लत, कुछ अपरिपक्व मान कर चुप लगा बैठा हूँ ।पर मैं इनके इस व्यवहार से असहज जरूर रहता हूँ .और बराबर ऐसयीच सोचता हूँ कि "साधू ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय सार सार को गहि रहे थोथा देई उडाय ! "तो क्या कहीं द्विवेदी जी सार के साथ थोडा थोथा भी रख लेते हैं -यह तो पञ्च भी बताएँगे ? तो क्या राय है आपकी पंचों ?
तो अभी तो द्विवेदी जी पर चर्चा की इस पहली पारी को विराम देताहूँ ! और सोचने लगता हूँ कि अगली शख्सियत कौन होगी ? कोई हिन्ट ??

बुधवार, 24 दिसंबर 2008

मेरे प्यारे ताऊ ! चिट्ठाकार चर्चा -3

मैंने बहुत सोचा विचारा -ख़ास दोस्तों से सलाह मशविरा किया और तय पाया कि क्यों न अपने ताऊ को ही इनीशियल एडवांटे (कांसेप्ट सौजन्य :ज्ञानदत्त जी ) दे दी जाय .और अभी तो यह चिट्ठाजगत आर्यपुत्रों{संदर्भ :अनूप शुक्ल जी एवं कविता वाचकनवी जी ) से भरा है सभी इस जद में आ ही जायेंगे देर सवेर ,मगर इन दिनों तो ताऊ की चांदी है - किसकी हिम्मत है जो इस दुर्धर्ष सृजनशील व्यक्तित्व को अनदेखा कर जाय .ताऊ तो छा चुका चिट्ठजगत में ! और अगर अब भी कोई इस शख्सियत को हलके फुल्के ले रहा है तो उसे सावधान हो जाने की जरूरत है .इन पर कवितायें लिखी जा रही है -यह चिट्ठाकार ख़ुद भी कवितायें लिख रहा है और विनम्रता (?)भी ऐसी कि उस कविता को लेकर उद्घोषणा कि उक्त कविता तो ठीक किसी और से (एक कविता से ही ) कराई गयी है -उसके तो बस टूटे फूटे अल्फाज भर ही हैं ! नही नही इस शख्स यानी अपने ताऊ को बिल्कुल हलके फुल्के नही लिया जा सकता ।वैसे मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि यदि कोई अचानक कविता वबिता लिखने लगे तो समझिये उसी किसी से -स्वकीया या परकीया से प्यार हो गया है .पर ताऊ बिचारे की यह हिम्मत कहाँ ? कोई लट्ठ लिए हरवक्त उसके पीछे है ! हार्ड लक ताऊ !!
ताऊ आए ,उन्होंने चिट्ठाजगत को देखा भाला और बस छा गए ! और सच बताऊँ आज अगर यहाँ कोई लोकप्रियता की वोटिंग हो जाय तो समीरलाल जी भी शायद एक दू वोटों से हार ही जायेंगे और यदि काउंटिंग में कुछ आर्यपुत्र भी शामिल हुए तो कहिये कि ताऊ के आगे समीर जी को हरा न दिया जाय ! मुख्य कारण यही है कि ताऊ की विस्तृत हौसला- आफजाई टिप्पणियों के आगे समीर जी की चंद शब्दीय टिप्पणियों से भला कौन खुश है -केवल मुझे छोड़कर ! तो मित्रों मेरी गुजारिश है कि इस ताऊ नाम्नी सज्ञां शक्ति को अब बहुत गंभीरता से लेने का वक्त आ गया है -ई महराज का अभी केवल टिप बाहर (टिप बोले तो मुंडी ! ) दिखा है बाकी आठ नौ हिस्सा तो इन्होने अभी जाहिर ही नही किया है .और शायद मुंडी भी नही -क्या चिम्पांजी किसी मनुष्य का चेहरा बन सकता है ?ये भी चिट्ठाजगत में -प्रत्यक्षतः गुमनाम बने रहना चाहते हैं पर उन्मुक्त जी की तरह मनसा वाचा कर्मणा नही - कोई उन्मुक्त जी ऐसा पाषाण ह्रदय हो भी कैसे सकता है -प्रशंसक हथेली पर जान लेकर न्योछावर करने को उद्यत हों और कोई झलक तक ना दिखलाए -पर ई अपना ताऊ इतना अनुदार नही है -वह एक सीधा सादा भावनाओं से भरपूर ताऊ है ,लोगों की इज्जत करना जानता/चाहता है और थोड़ी अपनी भी इज्जत की साध है -बिल्कुल भी तटस्थ या उदासीन नही है इसलिए आभासी दुनिया से बाहर आकर भी चाहने वालों को फोनिया फोनिया कर अपना सही अता पता बता चुका है -मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ताऊ के पास आभासी जगत के जितने लोगों का फून नंबर होगा ,किसी के पास भी नही होगा .सबजिंदगी से कट रहे लोग हैं -अब जैसे मेरे पास ही केवल दो चार फोन नंबर है लोगों के -लुगाईयों का तो बस एक ही नंबर ! हाय !! पर अपने ताऊ के पास किसी भी का नंबर लेना हो वहा मौजूद है !आप सभी गाँठ बाँध लें -शेष जीवन मजे से गुजारना है तो थोड़ी मोह्बद्ध्ता की गुन्जायिश जीवन में बनाए रखें ,थोडा ही सही ताऊ बन जायं ! कुछ इश्क विश्क करें -अब अमिताभ जब इतनी उम्र में अपनी उम्र से इतना नीचे गिर कर यह सब कर ले रहे हैं तो आप क्यों नही ? क्या कहा ? वो अभिनय है -तो मैं कहाँ कह रहा कि आप सच्ची मुच्ची किसी लफडे में पड़ें ! अब ताऊ भी ऐसा कोईसचमुच का लफडा कहाँ पाल रहा है -उसे भी तो ताई की लट्ठ का डर है ! तो तय पाया कि अपना ताऊ एक मस्त मौला इंसान है और जीवन्तता से लबरेज है पर है बड़ा जालिम भी -ये कई और खुराफाते नेट पर कर रहा है पर मुझे गोपनीयता की शपथ है इसलिए नही बता पा रहा .पर सावधान जरूर कर दूँ आपसभी को- इस शख्स को हलके मे लिया आपने तो गए !
ताऊ दोस्तों का दोस्त है -अपने साईब्लाग चिट्ठे पर जब मैं नारी सौन्दर्य का अवगाहन कर रहा था और आभासी जगत की आभासी जूतियाँ चप्पलें खा रहा था तब वे ताऊ ही थे जो एक लौह ढाल बन आ गए मेरे फेवर में ! ताऊ की मेरी दोस्ती तभी की है और अब तो बहुत प्रगाढ़ हो चुकी है -बस दांत काटी रस्म रह गयी है -एक तो यह आभासी जगत है दूसरे उनसे वास्तविक भौगोलिक दूरी भी काफी है ! पर हमराज हम फिर भी हैं .बस उन्हें यह नही बताया कि मैं उन्हें इनीशियल एडवांटेज (या डिसएडवांटेज ! ) देने जा रहा हूँ -भडकना मत ताऊ -मैं तुझ पर अपना हक़ समझने लगा हूँ इसलिए यह प्रलाप कर डाला हूँ .अब अंत में देखिये ताऊ अपने बारे में क्या कहते हैं -
अब अपने बारे में क्या कहूँ ? मूल रुप से हरियाणा का रहने वाला हूँ ! लेखन मेरा पेशा नही है ! थोडा बहुत गाँव की भाषा में सोच लेता हूँ , कुछ पुरानी और वर्त्तमान घटनाओं को अपने आतंरिक सोच की भाषा हरयाणवी में लिखने की कोशीश करता हूँ ! वैसे जिंदगी को हल्के फुल्के अंदाज मे लेने वालों से अच्छी पटती है | गम तो यो ही बहुत हैं | हंसो और हंसाओं , यही अपना ध्येय वाक्य है | हमारे यहाँ एक पान की दूकान पर तख्ती टंगी है , जिसे हम रोज देखते हैं ! उस पर लिखा है : कृपया यहाँ ज्ञान ना बांटे , यहाँ सभी ज्ञानी हैं ! बस इसे पढ़ कर हमें अपनी औकात याद आ जाती है ! और हम अपने पायजामे में ही रहते हैं ! एवं किसी को भी हमारा अमूल्य ज्ञान प्रदान नही करते हैं ! ब्लागिंग का मेरा उद्देश्य चंद उन जिंदा दिल लोगों से संवाद का एक तरीका है जिनकी याद मात्र से रोम रोम खुशी से भर जाता है ! और ऐसे लोगो की उपस्थिति मुझे ऐसी लगती है जैसे ईश्वर ही मेरे पास चल कर आ गया हो !
पर मित्रों इन चिकनी चुपडी बातों में मत आना -इनमे बहुत सी बातें आप को भरमाने वाली हैं -आप ख़ुद समझें कि ताऊ किस फेनामेनन का नाम है ! क्योंकि अब यह किसी भी चिट्ठाकार के वश की बात नहीं कि वह ताऊ को सिम्पली इग्नोर कर सके .ताऊ चुके हैं और छा चुके हैं !

सोमवार, 22 दिसंबर 2008

अथ श्री चिट्ठाकार चर्चा -कुछ स्पष्टीकरण !

अंगरेजी की वह मशहूर कहावत है न कि मूर्ख वहाँ तक बेधड़क चले जाते हैं जहाँ विद्वान् जाने के पहले कम से कम दो बार सोचते हैं -सो मैंने भी ऐसी ही करतूत एक सनक में कर डाली और चिट्ठाकार चर्चा छेड़ दी ! पहली चर्चा में जाहिर है मेरे प्रिय कन्टेम्पोरेरी क्लासिक ब्लागरों- सारथी के शास्त्री जी और उन्मुक्त जी जो कई बात व्यवहार में दो विपरीत ध्रुव् सरीखे हैं का ही उल्लेख होना था और वे मेरे बेसऊरपने की जद में आ ही गए ! बहरहाल ,उस पोस्ट पर जो टिप्पणियाँ आयी उससे मेरी आँखें अकस्मात खुल गयीं ! मैं कोई बड़ा तीर नही मारने जा रहा था -अनूप शुक्ल जी ऐसी वैसी चर्चाएँ n जाने कब की कर के छोड़ चुके हैं और वह भी बहुत सुरुचिपूर्ण तरीके से ! अब वे भी ठहरे एक पुरातन-चिर नवीन /चिर प्राचीन जमे जमाये चिट्ठाकार और कभी कभी तो लगता है कि यहाँ ब्लॉग जगत की कितनी बातें उन्ही से शुरू हुयी हैं और वही जाकर विराम /पनाह मांग रही हैं .और एक प्रयास यह भी है जो चिट्ठाकार चर्चा ही है हाँ थोडा चिट्ठा और चिट्ठाकार का घाल मेल जरूर हैं यहाँ पर ,पर है तो यह चिट्ठाकार चर्चा ही.
पिछली पोस्ट पर मित्रों ,सुधीजनों की इतनी उत्साहजनक टिप्पणियाँ आयीं कि मैं सहसा ही गंभीर हो गया कि लो यह मुआमला तो गले ही पड़ गया -लोगों को मुंह दिखाने लायक काम चाहिए -कोई कैजुअल वैजुअल चर्चा नही लोग बिजनेस मांगता है ,फिर कुछ टिप्पणियों ने तो दिल पूरी तरह बैठा ही दिया -रचना जी ने इतने गर्मजोशी से इस विचार को लिया और उत्साह्भरी प्रतिक्रया दे डाली कि मैं थोडा अचकचा सा गया कि कही कोई गलती तो नही हो गयी -क्योंकि वे मुझे पहले एक बार तगडे हड़का चुकी हैं -अब बेसऊर बुडबक सीधे साधे गवईं मानसिकता वाले मनई को कोई एक बार जम के हड़का ले तो उससे तो वह आजीवन हड्कता रहता है .और जी में संशय भी बना रहता है कि फिर ससुरा कउनो लफडा न हो जाय -इसलिए उनकी सकारात्मक टिप्पणी को भी मैं सशंकित सा ही देखता रहा .फिर कुश भाई ने सहज ही पूंछ लिया कि मैंने चिट्ठाकार चर्चा के बाबत कुछ योजना तो बनायी होगी ! अब तो मैं पूरी तरह अर्श से फर्श पे आ गया .ऐसी तो कोई योजना मैंने वस्तुतः बनायी ही नही थी ,वह तो एक सहज आवेग था बस बह चला -मगर आज का युवा तो प्रबंधन युग का है -कुश के इस सहज से सवाल ने मुझे और भी असहज बना दिया .हिमांशु जी ने भी कुछ अपनी अवधारणा प्रगट की और कहा कि मैं लोगों के प्रोफाईल से भी कुछ मैटर उडाऊं .डॉ अनुराग जी ने निष्पक्षता की आकांक्षा की , लावण्या जी ने बकलम ख़ुद की ओरइशारा कर इस दिशा में पहले से हो रहे उल्लेखनीय योगदान की ओर ध्यान दिलाया .
अब मेरा पशोपेश में पढ़ना लाजिमी ही हैं न मित्रों /आर्यपुत्रों ? क्या करुँ ,कैसे करुँ ? अब करुँ भी या न करुँ ! और करुँ भी तो किस किस की करुँ ? कस्मै देवाय हविषा विधेम ?? यहाँ तो एक से बढ़ कर एक हैं ? नर पुंगव ! पिशाच और भूत वैताल तक भी ! भूत भावन भी हैं तो भूत भंजक भी ! परम ज्ञानी हैं, केवल ज्ञानी हैं तो अपने ज्ञानदत्त जी भी हैं !
लेकिन मैं मैदान छोड़ कर भागने वाला भी नही हूँ -बोले तो आई ऍम नोट ए क्विटर ! आप सभी विद्वतजनों के विचार सर माथे .मगर अपनी भी एक बात कहनी है -कहनी क्या दुहरानी भर है कि ब्लॉग तो अपनी निजी डायरी है और अंततोगत्वा इसके नियम कायदे तो ख़ुद मुझे ही तय करने हैं -हाँ आप सभी लोगों के विचारों और सुझावों को मैंने गहरे हृदयंगम कर लिया है .पर लिखना तो मुझे वही है जो मुझे मन भाए -स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ! हां पूरी कोशिश यह जरूर रहेगी कि किसी का दिल ना दुखे और बात भी कह ली जाय .यह है तो बड़ा मुश्किल काम मगर असम्भव थोड़े है और आप इतने जनों की शुभकामनाएं भी तो मेरे साथ हैं .मैं अपनी चिट्ठाकार चर्चा में -
१-सम्बन्धित चिट्ठाकार के बारे में अपना परसेप्शन रखूंगा .
२-अपने दोसाला अत्यल्प ब्लागकाल में मैं अपने नजरिये से उसके व्यक्तित्व और माईंड सेट की तहकीकात करूंगा -सरकारी सेवकों की चरित्र प्रविष्टि देने के लिए चरित्र प्रविष्टि कर्ता अधिकारी को महज तीन माह का ही समय अंग्रेजों ने तय किया था -मै तो अब दो साल से यहाँ हूँ ! पर यहाँ तो कोई चरित्र प्रविष्टि देने जैसी कोई बात नही है -बस मेरे पसंदीदा /गैर पसंदीदा ब्लागर के बारे में मेरे विचार यहाँ व्यक्त होने हैं और आपके नीर क्षीर विवेक की कसौटी पर उसे देखा जाना है -प्रकारांतर से यह मेरा भी एक परीक्षण ही होगा कि मैं कितना सही हूँ या ग़लत .
३-यह किसी ब्लागर का जीवन चरित लेखन का कतई प्रयास नही है .और नही कोई ठकुर सुहाती ही !
४-पर यह चर्चा होगी व्यक्तिनिष्ठ ही ,विज्ञान सेवी होने के बावजूद भी मैं ऐसा कोई दंभ नही पालना चाहता कि मैं वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण में दक्ष हूँ .मैं एक साधारण सा मनुष्य हूँ और कई राग विराग और मानवीय कमजोरियों से ऊपर नही उठ सकाहूँ .तो गलती भी सहज संभाव्य है . इसलिए भावी चयनित-चर्चित चिट्ठाकारों से अग्रिम क्षमां मांग लेता हूँ -कुछ अंट शंट निकल जाय तो प्लीज उसे ईंटेनशनल न माने .
५-चिट्ठा कार चर्चा का उद्द्येश्य महज एक दर्पण हो सकता है - हम अपने साथियों की छवि को एक दूसरे /तीसरे की आंख में देखें .
६-यह कोई आधिकारिक चिट्ठाकार चर्चा कदापि नही है मन का फितूर भर है .उससे ज्यादा कुछ नही अतः इसे गंभीरता से बिल्कुल न लिया जाय .
अब किसकी चर्चा शुरू करें -सोचते हैं !

गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

बैठे ठाले एक चिट्ठाकार चर्चा -पहली कड़ी

इधर मुम्बई के हादसे ने कुछ ऐसा कर डाला था की ब्लॉग जगत से भी अरुचि सी हो गयी थी और अभी भी थोड़ी बहुत यह अरुचि बनी हुयी है ! ऐसा होने में दृश्य मीडिया की भी काफी भूमिका रही पर मैं इसके लिए उन्हें नही कोसता -दृश्य मीडिया ने भले ही अपने काम को बहुत जिम्मेदारी से अंजाम नही दिया मगर उसके पत्रकारों ने जान जोखिम में डाल कर ख़बर हम तक पहुंचाई -काफी कुछ सच दिखाया -जिन परिस्थितियों में वे काम कर रहे थे उसमें आचार संहिता का पालन बहुत मुश्किल था और समय भाग सा रहा था .और दुश्मनों के विरुद्ध जनमत इकट्ठा करने में तो दृश्य मीडिया ने उत्प्रेरक की भूमिका निभायी है,कमाल कर दिखाया है -टाईम्स ग्रुप्स ने तो आतंकवाद के विरुद्ध एक जेहाद सा छेड़ रखा है .मगर खौफनाक दृश्यों और मौजूदा हालातों ने मन काफी उचाट सा कर दिया और शायद हम बहुतों की स्थिति ऐसी है कि हमें मनोरोगविद -सायिकियाट्रिस्ट की सलाह लेनी चाहिए ।
मेरी मुश्किल यह है कि मुम्बई हादसे के तुंरत बाद से मैं सायिकियाट्रिक मोड़ में चला गया और चिडचिडेपन का शिकार हो गया -तब से मैंने कई ब्लागों पर इसी मोड में टिप्पणियाँ करता रहा हूँ और सचमुच बहुत आभारी हूँ अपने तमाम सहधर्मियों का कि वे मुझे झेलते आरहे हैं .अब नाम नहीं लूगा पर अपने कई ब्लॉग मित्रों का मैं क्षमां प्रार्थी हूँ -और इस पोस्ट की भी अग्रिम क्षमा मांग ले रहा हूँ क्योंकि अभी भी मैं आक्रान्तता मोड से पूरी तरह से उभर नहीं पाया हूँ .पर यह पोस्ट मेरे पटरी पर लौट आने का एक सायास प्रयास है -शायद काम बन ही जाय ।
जब हम चिट्ठाचर्चा में इतनी रूचि ले रहे हैं तो क्या यह उचित नही है कि बीच बीच में कुछ चिट्ठाकार चर्चाएँ भी कर ली जायं . साहित्य में कृतित्व के साथ व्यक्तित्व वर्णन की भी परिपाटी रही है -अनूप जी इस बात से इत्तेफाक रखेंगे .वैसे यह विवादित मुद्दा है -कई स्वनामधन्य विद्वानों का कहना है कि साहित्यकार का कृतित्व क्या कम नहीं जो उसके निजी जीवन में भी ताकझांक की जाय ? भाई क्या मतलब कि आपका पसंदीदा रचनाकार /ब्लॉगर कैसा है ,सुंदर देहयष्टि का स्वामी /स्वामिनी है या नही है ? क्या खाता पीता है ,कहाँ जाता सोता है -दयालु है या मरकहा है आदि आदि! कोई ये जरूरी नही है कि वह लिखता अच्छा है तो होगा भी अच्छा ही ! कई संयोग हो सकते हैं -लिखता अच्छा है तो दिखता बुरा है ,लिखता ख़राब है तो दिखता देवदूत है .इस बिन्दु पर किसी ब्लॉगर बन्धु /बांधवी ने चर्चा छेड़ी भी थी .पर अपुन का मानना है कि कुछ तो व्यक्तित्व (केवल चेहरा मोहरा ही नहीं )का असर पड़ता ही है -कविता कर के तुलसी ना लसे कविता पा लसी तुलसी की कला !
पर मैं यह प्रलाप कर क्यों रहा हूँ ?-मित्रों मैं अपने आक्रान्तता मोड से उबरना चाहता हूँ इसलिए अनाप शनाप बैठे ठाले ये प्रलाप किए जा रहा हूँ और आपको झेलना पड़ रहा है .मुआफी माई बाप !! तो ऐसे ही मेरे मन में इक खयाल आया कि क्यों न चिट्ठाचर्चा की तर्ज पर कुछ नामवर और कुछ बदनामवर चिट्ठाकारों की चर्चा ही की जाय कभी कभी ! यानी कोई क्या सोचता /सोचती है अपने ब्लागजगत के सहधर्मियों के बारे में -इस विधा की भी ब्लागजगत में प्राण प्रतिष्ठा क्यों ना की जाय ? मगर यह काम यथा सम्भव वस्तुनिष्ठता से हो तो बेहतर, मगर हम लाख दावे करें कुछ न कुछ भावनिष्ठ्ता तो हमारे विवरणों में आयेगी ही -पर इतना जोखिम तो उठाना ही पडेगा ।
और ब्लॉगर बंधुओं से भी आग्रह है कि वे यदि कबिरा निंदक राखिये वाला जज्बा ना भी रखते हों तो भी कृपा कर आवेश में न आयें या यदि उन्हें कोई आशंका हो तो पहले ही निराकरण कर लें या फिर नाम काटने का आग्रह कर , यदि उन्हें लगता हो कि संभावित सूची में उनका नाम भी हो सकता है .
तो श्रीगणेश मैं ब्लॉग जगत के दो आदरणीय शख्सियतों से कर रहा हूँ जिनके प्रति मेरे मन में असीम आदर /सम्मान है -ये हैं सारथी के आदरणीय शास्त्री जी औरउन्मुक्त जी ! ध्यान दें मैं यहाँ इन दोनों महानुभावों का जीवन चरित नहीं लिखने जा रहा हूँ पर इन्हे लेकर मेरे मन में जो भाव है उसे आप से साझा करना चाहता हूँ -करना चाहता हूँ चिट्ठाकार चर्चा !
अथ श्री चिट्ठाकार चर्चा !
ये दोनों ही चिट्ठाकार व्यक्तित्व के मामले में दो ध्रुव हैं बिल्कुल अलग थलग ! एक अपना सब कुछ सार्वजनिक करने को सहज ही उद्यत रहता है ,आतिथेय बनने को भी सदैव तत्पर यानी अपने शास्त्री जी तो दूसरे उन्मुक्त जी के बारे में आज तक जासूसी करने के बाद भी मुझे पक्का कुछ नही मालूम हो सका कि ये कहां के रहनेवाले हैं ,इनका असली नाम क्या है ? कोई कहता है कि ये इलाहाबाद में एडवोकेट हैं तो कोई कहे है कि ये दिल्ली केआस पास कहीं के हैं -इनकी अतिशय विनम्रता या जीवन दर्शन है कि लोगों को उनके काम से जाना जाय .ये हमारे उन आदि पूरवज मनीषियों की ही परम्परा में हैं जिन्होंने कितना ही रच डाला पर नाम पता भी ठीक से उद्धृत तक तक नही किया -आज साहित्य और इतिहास के विद्वानों को बड़ी मुश्किल होती है उनके काल निर्धारण में ,उनकी असली पहचान स्थापित करने में ! कालिदास ,कौटिल्य, पातंजलि ऐसे ही कोटि के विद्वान् रहे -कितने पुराणकारों ने विपुल सर्जना के बाद भी अपना नामोंल्लेख तक नही किया .उन्मुक्त जी उसी परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं .पर कभी कभी बहुत खीझ सी होती है इस अतिशय विनम्रता से .मैंने उन्हें विज्ञान कथाओं के राष्ट्रीय परिचर्चा में लाख बुलाना चाहा पर वे नही आए -शायद कहीं गोपनीयता भंग न हो जाय -पर भला आज की दुनिया में यह भी कोई बात हुई ? चलिए संतोष इस बात का है कि हम उनके रचना जगत से समृद्ध हो रहे हैं ! और उनकी भी विज्ञान कथाओं में बड़ी रूचि है -अज्ञेयवादी हैं और इस कारण भी मैं उनसे मन से जुड़ा हूँ !
शास्त्री जी की भी सदाशयता का मैं कायल हूँ -वे वेल रेड विद्वान् हैं भौतिकी के विशेषग्य और उतना ही विनम्र .पर उनके अपने कुछ आब्सेसन भी हैं जैसे वे इसाई धर्म के प्रति अनुरक्त है .भगवान में प्रबल श्रद्धा है !! तो ये दोनों बड़े ब्लॉगर कई मायनों में उत्तर और दक्षिण ध्रुव सरीखे हैं पर ये दोनों बहुत वरिष्ठ ,प्रणम्य ब्लॉगर साथी हैं -समूचे ब्लागजगत को इन पर गर्व है ! मेरा नमन !
आगे देखिये किसका नाम मन में कौंधता है -यह आप भी हो सकते हैं ! करिये धड़कते दिलों से इन्तजार अपनी बारी आने का !

शनिवार, 13 दिसंबर 2008

रायशुमारी का नतीजा -क्या भारत को पी ओ के के आतंकी ठिकानों पर आक्रमण कर देना चाहिए ?

रायशुमारी का सांख्यिकीय नतीजा -७६ प्रतिशत का कहना है कि जी हाँ हमें पाक के आतंकी ठिकानों पर हमला कर देना चाहिए ,केवल २३ प्रतिशत इसके पक्ष में नहीं हैं उनकी अपनी अपनी आशंकाएं हैं ! यह एक प्रतिनिधि सर्वेक्षण कहा जायेगा क्योकि इस ब्लॉग पर टिप्पणीकर्ता रैंडम रूप से आए हैं -यह जनमत संग्रह दरसल भारत के मूड को प्रगट करता है .भारत पर आतंकी आक्रमण के फौरन बाद जिस सदमे / सकते की स्थिति में हम थे अब उससे उबर रहे हैं और सबसे अच्छी बात यह कि हम अब आतंकवाद को नेस्तनाबूद करने के प्रति और दृढ़ प्रतिज्ञ हैं ! मुम्बई के गेट वे आफ इंडिया पर हो रहे अहर्निश जन प्रदर्शनों ने हमारे संकल्प को पूरी मजबूती के साथ दुनियाके सामने रखा है । हम अब शायद पहले से भी कहीं बहुत अधिक एक राष्ट्र के रूप में एकजुट हो गए हैं ! इस संदेश को भारतीय संसद ने ही नहीं पूरी दुनिया ने सही तरीके से ले लिया है -हम अब कुछ भी नानसेंस बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं .अगर पाकिस्तान अब भी नही चेत्तता और आतंकी गतिविधियों पर पूर्ण विराम नहीं लगाता तो एक सबक सिखाने वाला युद्ध निश्चित है -इसे हमारे देश के मध्यमार्गी (प्र )बुद्ध जन भी अब रोक नहीं पायेंगे !
आज पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बहुत जर्जर है और उसे अपनी खस्ता हालत के मद्देनजर सदबुद्धि दिखानी होगी .उसे वांछित आतंकियों को सौंपना ही होगा -इससे कम कुछ भी स्वीकार्य नही है .पर जो दिख रहा है वह यह कि अभी भी वह अपनी हेकडी से बाज नही आ रहा -अभी भी वह आतंकी घटनाओं में पाकिस्तानियों के होने का प्रमाण माँगता जा रहा है जबकि पकडे आतंकी का पिता चिल्ला चिला कर उसका बाप होने का दावा कर रहा है और पाकिस्तान का मीडिया भी इसकी पुष्टि कर रहा है -क्या केवल भारत द्वारा एक पूरी ताकत से किया आक्रमण ही प्रमाण की कमीं को पूरा कर सकेगा ? ज़रा रायशुमारी में प्राप्त टिप्पणियों पर गौर तो करें -संदेश बिल्कुल स्पष्ट है कि अब हमारे सब्र का बाँध टूंट चुका है और हम अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे .और भारत में भी यदि किसी ने भी बुद्धि विवेक छोड़ कर आचरण अपनाया तो उसकी खैर नहीं है -वह चाहे हमारे नपुंसक छद्म धर्म निरपेक्षी हों या देश की मुख्य धारा और राष्ट्रीय भावना से वंचित अन्य धर्मावलम्बी ! यहाँ धर्म की कोई बात ही नही है -यहाँ मात्र एक संप्रभुता संपन्न देश जिसकी आबादी लगभग सवा अरब है के मान प्रतिष्टा की बात है ! और हमने अब तय कर लिया है कि किसी भी उद्दंडता का हम मुँहतोड़ जवाब देंगे ! हमारी मंशा से लोग परिचित हो जांय और किसी भी तरह के मुगालते में न रहें -आतंकवाद के ख़िलाफ़ हमारी लडाई अब निर्णायक दौर में है .
आज सबसे बडा दायित्व मुसलमान भाईयों पर आ गया है -मैं जानता हूँ कि हमारे अनेक मुसलमान भाई असंदिग्ध रूप से अपने देश के साथ हैं पर सभी मुसलामानों के बारे में ऐसा विश्वास यहाँ के बहुसंख्यकों को नहीं है ,यह एक यथार्थ है जीससेमुंह नही मोडा जा सकता -आम ख़ास मुसलमान भाईयों को भी जाने अनजाने भी ऐसे किसी भी सदिग्ध आचरण से बचना होगा ,अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी जिससे कोई ग़लत संकेत उनके बहुसंख्यक भाईयों में जाय .यह उनके लिए भी एक अग्नि परीक्षा का समय है । हमारे यहाँ संदेह के चलते कई कई अनर्थ हो चुके हैं -यहाँ तक कि लोक कथाओं में हनुमान को अपना वक्ष दोफाड़ कर दिखाना पडा है कि वहां सीता राम ही बसते हैं -आज इतनी कठिन परीक्षा तो कोई दे नही सकता ,इसलिए पूरी जिम्मेदारी और संयम की जरूरत है .हाँ बहुसंख्यकों को भी पूरी जिम्मेदारी के साथ अपनी मिश्रित परम्परा के अनुरूप मुसलमान भाईयों के सम्मान में कोई कमी नही आने देनी चाहिए .और बिला वजह और हर बात पर उन पर शक करने भी किसी भी तरह जायज नहीं है -मौके की नजाकत वे भी समझ रहें हैं और वे किसी भी चूक का मौका निश्चित रूप से नही देंगे !
मैं तो बहुत चाहता था कि रायशुमारी की कुछ चुनिन्दा प्रतिक्रियाओं को यहाँ पुनः उद्धृत करुँ पर ब्लॉग की प्रवृत्ति और मौजूदा कलेवर के अनुरूप यह ठीक नही होगा -हाँ आगे हम चुनिन्दा प्रतिक्रियाओं को सम्मिलित करते हुए एक विवेचना अवश्य करेंगे !
फिलहाल एक बानगी के तौर पर अब तक प्राप्त अन्तिम प्रतिक्रया टिप्पणी यहाँ जस का तस् उद्धृत कर रहा हूँ -
दुश्मन देश स्थित आतंक के अड्डों पर हमले के लिए इजरायल जैसी राजनैतिक ईच्छा-शक्ति और प्रतिबधता चाहिए जो बिना किसी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की परवाह किए अपने देश हित में कार्यवाही करता है.जिन यहूदियों को हिटलर ने नेस्तनाबूद कर दिया , जिनको एक सूखे बंजर का टुकडा रहने के लिए मिला, आज वो कौम कृषि यन्त्र और खासकर सिंचाई यंत्रो में विश्व में अग्रणी है !
उन पर एक गोली चलाओ -- जवाब में वो आप पर पुरी मैगजीन खाली कर देंगे ! स्पस्ट रूप से जब हमें इसी महाद्वीप में रहना है तो इजरायल वाली नीति ही कारगर होगी.. जैसे को तैसा ....
-मीनू खरे

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