गुरुवार, 14 मई 2009

चिट्ठाकार समीर लाल : जैसा मैंने देखा -3

चिट्ठाकार समीर लाल -जैसा मैंने देखा !

चिट्ठाकार समीर लाल : जैसा मैंने देखा -2

'बिखरे मोती' को रचनाकार ने गीत ,छंद मुक्त कविताओं,गजल ,मुक्तक और क्षणिकाओं अर्थात साहित्य की जानी पहचानी विधाओं से सजाया सवारा है . संग्रह में संयोजित रचनाएं रचनाकार को इन सभी विधाओं में सिद्धहस्त होने की इन्गिति करती हैं . हां यह जरूर है कि ये सभी रचनाएँ पाठकीय एकाग्रता की मांग करती हैं क्योंकि इनके अवगाहन में पल पल यह आशंका रहती है कि सरसरी तौर पर पढने में कहीं कोई सूक्ष्म भाव बोधगम्य होने से छूट न जाय! रचनाकार ने अपने व्यतीत जीवन की अनेक गहन अनुभूतियों को ही शब्द रूपी मोतियों में ढाल दिया है मगर संभवतः एक लंबे काल खंड के अनुभवों की किंचित विलम्बित प्रस्तुति ने ही उसे इन शब्द -मोतियों को बेतरतीब और बिखरे होने की विनम्र आत्मस्वीकृति को उकसाया है .मगर रचनाओं के क्रमिक अवगाहन से यह कतई नही लगता कि कवि के गहन अनुभूतियों की यह भाव माला कहीं भी विश्रिनखलित हुई हो !

संग्रह के २१ गीत दरअसल समय के पृष्ठ पर रचनाकार के भाव स्फुलिगों के ज्वाज्वल्यमान हस्ताक्षर हैं ! कहीं तो वह एक उद्दाम ललक "प्यार तुम्हारा इक दिन हासिल हो शायद बस्ती बस्ती आस लिए फिरता हूँ मैं "(पृष्ठ -२५) का प्रतिवेदन कर रहा है तो कहीं " तुझे भूलूँ बता कैसे तुझे हम यार कहते हैं " (पृष्ठ -२६)की मधुर स्म्रतियों में खो गया सा लगता है ! "तुम न आए "(पृष्ठ ३१) विरही भावों का खूबसूरत गीत है जो पाठको में भी सहज ही विरही स्म्रतियों को कुरेदने का फरेब सा करता लगता है !

कवि समीर का पूरा व्यक्तित्व ही इस गीत में उमड़ आया है -" वैसे मुझको पसंद नही "( पृष्ठ -३६) , भले ही इसका शीर्षक कविता की आख़िरी पंक्ति -"बस ऐसे ही पी लेता हूँ " ज्यादा सटीक तरीके से रूपायित करती हो मगर कविवर ठहरे चिर संकोची सो एक कामचलाऊ शीर्षक ही से संतोष कर बैठे ! वैसे यह गीत मेरी पसंद का नंबर १ है ..." जब मिलन कोई अनोखा हो .....या प्यार में मुझको धोखा हो ....जब मीत पुराना मिल जाए या एकाकी मन घबराए ....बस ऐसे में पी लेता हूँ " ऐसी ही कवि की विभिन्न मनस्थितियों को यह लंबा किंतु बहुत प्यारा गीत सामने लाता है और पाठक के मन में भी टीस उपजाता चलता है ! यह गीत समान मनसा पाठक को सहसा ही रचनाकार के बेहद करीब ला देता है ! कवि के विस्तीर्ण जीवन की मनोंनुभूतियों के चित्र विचित्र भावों का ही मोजैक है यह गीत !

रचनाकार की छंदमुक्त कवितायें भी कविमन के गहन भावों की सुंदर प्रस्तुतियां हैं -" मेरा बचपन खत्म हुआ ....कुछ बूढा सा लग रहा हूँ मैं ...मीर की गजल सा " (पृष्ठ -४७)या फिर "उस रात में धीमें से आ थामा उसने जो मेरा हाथ ...मैं फिर कभी नही जागा " ( पृष्ठ -६३) । "चार चित्र " शीर्षक कविता में मानव जीवन के विभिन्न यथार्थों का शब्द चित्र उकेरा गया है -मसलन " वो हंस कर बस यह याद दिलाता है वो जिन्दा है अभी "(पृष्ठ -६७)
जीवन की यह क्रूर नियति तो देखिये ," महगाई ने दिखाया यह कैसा नजारा गली का कुत्ता था मर गया बेचारा " ( पृष्ठ -७०)


अभी जारी ......






21 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
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  2. बहुत बढिया..आगे का इंतजार है.

    रामराम.

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  3. समीर जी के कवि रूप की सुन्दर समीक्षा उपलब्ध कराई है आपने. धन्यवाद.

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  4. भाई अब तो समीर लाल जी की कुछ पूरी कविताएं भी पढ़वा ही दीजिए.

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  5. इसी बहाने आपने ढेर सारे मोती बिखरा दिये।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  6. बड़ी खुशखबरी है यह मेरे लिए भी और ब्लाग जगत के लिए भी। ब्लाग जगत इतना पक चुका है कि इसे वाकी समीक्षकों की आवश्यकता है।

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  7. @इष्टदेव जी
    बस आगतांक में तनिक धीरज रखें !

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  8. सर जी,
    मैंनें 275 पठा दिये थे..
    कितबिया कहीं खो गयी,
    प्राप्त ही न हुयी, या द्वितीय सँस्करण मिलेगा, पता नहीं ?
    सो कविताओं को बिना पढ़े टिप्पणी कर पाना बे ईमानी है,
    जब टीपना ही नहीं, सो सनद कर लिया है, यह तीनों कड़ियाँ एक्सत्थै पढ़ूँगा !

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  9. बकिया का समीर जी इतने अंको में भी न समायेंगे??

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  10. पुस्तक निकल जाने पर
    इस तरह की सच्ची समीक्षा से साहित्यकारोँ का हौसला
    हमेशा बुलँद होता है -
    बहुत अच्छा लिखा है आपने
    स स्नेह,
    - लावण्या

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  11. बहुत बढिया..

    समीर लिलाओ का विशेष धारावाहीक प्रसारण हेतु आपका शुक्रिया। हमारी पसन्द के है समीरजी।

    आभार जी
    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभु यह तेरापन्थ

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  12. समीर जी की कविताओं के जो उद्धरण आपने दिये हैं, उनसे ही इन कविताओं का प्रभाव दीख रहा है, और उस पर आपकी यह प्रभावी समीक्षा । आभार।

    पर अमर जी सच कहते हैं, बिना कवितायें पढ़े बहुत कुछ नहीं कहा जा सकता इन कविताओं पर- सो फिलहाल तो हम पढ़ रहे हैं आपकी रचनात्मक समीक्षा- जिसमें बहुत हद तक मुझे मौलिक रचना का आस्वादन हो रहा है ।

    आगे की कड़ी की प्रतीक्षा ।

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  13. देर से आ पाया...
    पुस्तक की प्रतिक्षा में हूँ। किसी भी दिन आने को है..
    आपकी विलक्षण लेखनी से उत्सुकता चरम पे पहुँच गयी है

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