सोमवार, 3 मई 2010

अच्छे बुरे लोगों की मेरी आख़िरी पोस्ट

पसंद नापसंद और अच्छे बुरे लोगों पर यह आख़िरी यानि समापन पोस्ट है. एक बात तय है कि अच्छाई बुराई एक सापेक्षिक अवधारणा है -विद्वान् टिप्पणीकारों अली सा आदि ने इस विषय की विवेचना और एक निश्चित राय /विचार तक पहुचने में बड़ी मदद की है -व्यक्ति तो निजी  तौर पर पसंद नापसंद  किये जा सकते हैं मगर बुराई या अच्छाई का निर्धारण एक सामूहिक सोच के आधार पर ही होने की परम्परा रही है -कोई अगर अपराधी है तो समाज का एक बड़ा हिस्सा उसे अपराधी  समझता  है .अब ब्लॉग जगत में भी ऐसी प्रवृत्तियाँ दिख रही/चुकी  हैं जिनसे वह दिन दूर नहीं लगता जब यह सामूहिक निर्धारण भी होने लग जायेगा कि  अमुक अमुक ब्लॉगर तो सचमुच गन्दा आदमी /औरत है -और यह कुछ लोगों के मामलों में हो भी चुका है और ध्रुवीकरण की प्रक्रिया चल रही है -इसलिए सभी को अपनी अपनी फ़िक्र हो जानी चाहिए -मुझे भी बहुत लोग नापसंद करते हैं और यह संख्या बढ़ती जा रही है ..आये दिन कोई न कोई मेरी खिलाफत की गोल में अपनी हाजिरी दर्ज कर रहा है .मगर मैं समूह की बात के बजाय अपने खुद के आकलन पर ज्यादा निर्भर रहता हूँ ....यद्यपि यह लोकतांत्रीकरण की प्रक्रिया के विरूद्ध एक विचार है ...


सबसे गंभीर विवेचन को आमंत्रित टिप्पणी जील /डॉ.दिव्या श्रीवास्तव की थी और उस पर एक पोस्ट लिखने को उकसाती /उत्प्रेरित करती टिप्पणी अल्पना वर्मा जी की थी ....दोनों विदुषियों ने  पिछली पोस्ट पर सब बातों को विस्तार से ला दिया है ,मगर मुझे भी जरूर कुछ कहना है ...मैं जैविकी का विद्यार्थी रहा हूँ -जबकि मेरे कुछ काबिल मित्र जैव  निर्धारण वाद के विरुद्ध है -मगर मैं जैविकी को सिरे से नहीं नकार सकता. मैं मनुष्य को एक पशु ही मानता हूँ -एक सांस्कृतिक पशु -और उसकी एक निश्चित जैवीय विरासत  है. अगर  नर नारी के एक दूसरे के तरफ पारस्परिक रुझान  की बात करें तो -यह मूलतः जैवीय ही हैं -प्रथम दृष्टि का प्रेम जैवीय ही है ....और यह मामला सीधे सीधे लैंगिक चयन से जुडा है ,चाक्षुष चयन  और नारियों के  मामले  में  चरण दर चरण जैवीय अवचेतन  आकलन कि यह बन्दा भावी संतति का बोझ उठाने के प्रति ईमानदार भी  है -आनाकानी तो नहीं करेगा - अवचेतन  तो इसी उहापोह में लगा रहता है ....कोर्टशिप के अगले चरणों के कई अवरोधों के पार होने के बाद ही कोई भाग्यशाली (या हतभाग्य! ) नारी के "पर्सनल स्पेस" तक पहुँच पाता है -जैवीय मूल्यांकन के उपरांत ही ....मनुष्य ने एक अलग ही सामजिक व्यवस्था बना ली है -शादी व्याह, वैश्यागमन  या जिगोलोज इस जैवीय मूल्याकन  के विरुद्ध की मानवीय व्यवस्थाएं हैं .यहाँ पर्सनल स्पेस को प्रगटतः पा जाने में कोई प्रतिरोध नहीं है ....मगर उन स्थतियों में जहां एक सीमा के बाद नर उपेक्षित या तिरस्कृत होता है वहां मुश्किल आने लगती है -वह पीछे नहीं हटना चाहता ....आखिर उसका भी तो समय संसाधन सब कुछ गवायाँ हुआ रहता है -मगर नारी का सहज बोध उसे नहीं स्वीकारता क्योकि उसके जैवीव संवेदी तंतु जवाब दे चुके हैं -वह एक अच्छा बाप नहीं होने जा रहा है ....यही बड़ी त्रासद  स्थति है -मनुष्य में यह लैंगिक चयन नारी के मामले  में भावी संतति /वंशबेलि के नैरन्तर्य से जुडा है -अब इस बात को लेकर इतना संवेदी हो जाना समझ में तो आता है मगर इसे एक रूग्ण मानस -भय तक की अभिव्यक्ति दे देना शायद   ठीक नहीं है ....मनुष्य एक समझदार प्राणी है -ठीक से बातें समझाई जानी चाहिए -ऐसी कोशिश नहीं होनी चाहिए कि आपके तनिक हडबडी के निर्णय से कोई और एक बुरा बन जाय -अल्पना  जी के अनुसार खून खच्चर न कर बैठे .....मैंने भी कभी किसी को समझाया  था ....उसने तो मान   लिया था -यह निर्भर करता है कि आप ईमानदार कितने हैं ? .......कभी दूर तक न जायं अगर आप गम्भीर नहीं हैं ....दो दिलों का खेल कैजुअल नहीं है ..इसे गंभीरता से लें अथवा शुरू ही न करें ...शुरू भी कर दिया तो फिर फूक फूक कर कदम रखें ...और जितना जल्दी हो वापस हो लें .....हर पग आगे बढाने के किये सौ बार सोच लें ...

पुरुष का नारी की ओर और नारी का पुरुष की ओर आकर्षण सहज है ,स्वाभाविक है मगर तनिक सावधानी अपेक्षित है .लड़कियां भी सहज ही पुरुषों की ओर आकर्षित होती हैं -पुरुष मनोहर निरखत नारी ....मगर यहाँ सावधानी अपेक्षित है ....शुरू के मोहक आकर्षण बाद के लफड़ों में बदलने लगते हैं ...मेरे एक ब्लॉगर मित्र ने कहा कि यार ये लडकियां भी अजीब होती हैं पहले तो खुद आगे बढ़कर गलबहियां डालती है और कुछ समय बाद   पहचानने से भी  इनकार करने  लगती हैं ....पुरुषों में भी ऐसे ही दृष्टान्त दिखने को मिलते हैं और बाद में अनेक परेशानियों और मानसिक संत्रास के कारण बनते हैं -इनकी ओर शुरू से ही जागरूक  होना चाहिए -आगे बढिए मगर सोच विचार कर -क्योकि उभय पक्ष उत्तरोत्तर  डिमाडिंग होने लगते है और एक सीमा के बाद कोई रोक टोक मुश्किले ला खडी करती है ....कुछ ही दिन पहले  का प्यारा अब आंख की किरकिरी बन जाता है -एक नया बुरा व्यक्तित्व समाजं में आ धमकता  है किसी के प्यार का ठुकराया  हुआ...और हाँ हर हाव भाव और मुद्राएँ लैंगिक आकर्षण वाली नहीं होतीं ,सब जानते हैं यह -बताने की जरूरत नहीं होती-कुछ भ्रम भी होता है तो जल्दी दूर हो रहता है .....

किसका दोष कहें इसमें ? कुदरत या आदमी .....मगर यह इश्यू तो है और लाखों जिंदगियां इसके चलते बर्बाद हो रही हैं ....


42 टिप्‍पणियां:

  1. Kya kahun samajhme nahi aa raha..blog jagat me kuchh to asamnjasy chal raha tha/hoga, bas itnahi samajh paa rahi hun..

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  2. अच्छी श्रंखला। इस ने बहुत नई चीजें सिखाईं। हाँ एक सुझाव - आप 'आदमी /औरत' के स्थान पर व्यक्ति शब्द का प्रयोग कर सकते हैं।

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  3. मेरी समझ में नहीं आया कि इस बात (स्त्री-पुरुष के परस्पर आकर्षण) का अच्छे-बुरे या पसंद-नापसंद वाले मुद्दे से क्या लेना-देना है. शायद मैं बहुत बेवकूफ़ हूँ.

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  4. aapse poornatah sahmat .tamam prajatiyon ke saath ham bhee ek hain ,apnee prajati ke gun doshon ke sath.

    manav samaj ke banaye niyam,samaj ke niyaman ke prayas hain aur samay samay par vibhinn samaj is niyman me badlav late rahte hain bas.

    bakee ham bhee pashu hain.

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. i endorse the point raised by mukti except that i am not a fool

    dr arvind again posted what he wanted to about woman . body / attraction , betrayal so on so forth in the post unrelated to the current topic of discussion

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  7. द्विवेदीजी से सहमत..सभी श्रंखलाएँ चिंतन करने को बाध्य करती हुई थी...लेकिन इस पोस्ट के अंतिम पैराग्राफ का औचित्य समझ नहीं आया.....पहली बार कुछ तीखे अन्दाज़ में लिख गए ..बुरा लगे तो मूर्ख समझ कर माफ भी करेंगे..

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  8. @Mukti and Meenakshi ji
    जील ने अच्छे लोगों को बुरे बनने के कई कारण दिखाये -जिसमें किसी की निजता के अतिक्रमित करने पर तीव्र प्रतिकार का भाव है -यह जिन स्थितियों में होता होगा अपनी अक्ल के हिसाब से उनका वर्णनं किया -और मैं बृहस्पति नहीं हूँ -असमझता की गलतियां मुझसे भी हो सकती हैं -पोस्टें इसलिए भी लिखी जाती हैं !

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  9. अरे अर्विंद जी आप भी ना इस जील की वास्त्विकता ही किसी को मालूम नही, फ़िर भी उसे क्यो तुल दे रहे है, जो मुंह छुपा कर बात करे उस से क्या बहस.... छोडिये इन्हे ओर मस्त मोला बानिये वर्ना यह दुनिया तो सांस भी लेने नही देगी..... कोई मुझे बुरा कहे उस से पहले उसे अपने दामन मै झाकनां चाहिये, यहां लोग अनामी बेनामी बन कर ओर गंदगी फ़ेला रहे है, इन से क्यो डरे????

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  10. मुझे लगता है कि जरूरते समझने के लिये चाहे वो व्यक्तिगत हो या सामूहिक सबसे पहले हमे मास्ला की हाइरारिकी ओफ़ नीड्स पढनी चाहिये..

    मास्ला कहते है - "After physiological and safety needs are fulfilled, the third layer of human needs are social and involve feelings of belongingness. This aspect of Maslow's hierarchy involves emotionally based relationships in general, such as:
    Friendship,Intimacy and Family.
    Humans need to feel a sense of belonging and acceptance, whether it comes from a large social group, such as clubs, office culture, religious groups, professional organizations, sports teams, gangs ("Safety in numbers"), or small social connections (family members, intimate partners, mentors, close colleagues, confidants). They need to love and be loved (sexually and non-sexually) by others. In the absence of these elements, many people become susceptible to loneliness, social anxiety, and clinical depression. This need for belonging can often overcome the physiological and security needs, depending on the strength of the peer pressure; an anorexic, for example, may ignore the need to eat and the security of health for a feeling of control and belonging."


    कही न कही से ये आप भी कुछ कुछ सेम कहने की कोशिश मे दीखते है.. आपने शायद इस तीसरी नीड को और अच्छे से देखने की कोशिश की है..

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  11. @जी बिलकुल यही एंगल है पंकज जी -राहत हुयी किसी ने तो समझा !

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  12. जब मुक्ति ही अपने आप को बेवकूफ कह कर बच निकली तो मुझे तो कमेन्ट करने में बहुत सोचना पड़ रहा है ...पता नहीं मैं आपकी बात कितना समझ पायी हूँ ...थोड़ी सी बची हुई बुद्धि को मैं जाया करने में बहुत डरती हूँ ...फिर भी कोशिश कर रही हूँ ...

    स्त्री पुरुष के आकर्षण का पसंद -नापसंद से कोई सम्बन्ध नहीं है ...इसमें शक की कोई गुन्जायिश ही नहीं है ...अच्छा और बुरा कोई भी अपने आप में पूर्ण नहीं है ...बुरे माने जाने वाले व्यक्ति में भी कई अच्छे गुण हो सकते हैं और अच्छे बनने वालों में ढेरों अवगुण ...दीगर बात यह है कि कोई भी इंसान स्वयं अपने किस पक्ष पर ध्यान केन्द्रित करता है ...और दूसरों के सामने अपना कौन सा पक्ष रखता है ...
    मैं ये मानती हूँ कि हम वही होते हैं जो हम दिखाना चाहते हैं ...यदि आप लगातार दूसरों को अपमानित/लांछित या आलोचना करने जैसा कार्य करते रहे और दूसरों से उम्मीद रखे कि वे आपको विदूषक की भूमिका में देखें क्यूंकि आप अपने विषय के प्रकांड विद्वान् है ..तो माफ़ कीजिये ...हर इंसान इतना गुणग्राहक नहीं हो सकता है ....मैं जो हूँ ...वो हूँ कह कर कोई बच नहीं सकता ...और फिर यदि कोई खुद को जो दिखाना चाहता है ...लोग वही समझते हैं ...
    @ मनुष्य में यह लैंगिक चयन नारी के मामले में भावी संतति /वंशबेलि के नैरन्तर्य से जुडा है ...लैंगिक चयन भावी संतति के लिए ही है तो इसमें आकर्षण ही कहाँ रहा ...प्रेम की बात तो भूल ही जाएँ ...दिलों का खेल/प्रेम का संतति के लिए चयन से कोई सम्बन्ध मुझे समझ नहीं आ रहा ...प्रेम शरीर से बहुत ऊपर/अलग चीज़ है ..

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  13. @वाणी जी की टिप्पणी में यहाँ
    "वे आपको विदूषक की भूमिका"
    मेरे विचार से विदूषक के बजाय विद्वान् होना चाहिए ,जल्दी में मन की बात लिख गयीं लगता है !

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  14. अच्छे बुरे की पहचान और आकर्षण विकर्षण तो जुड़े हुए हैं। यह पक्ष नहीं आता तो मुझे अधूरा लगता । हाँ, प्रस्तुति में इनके अन्योन्याश्रित पक्ष का खुलासा होने से रह गया।
    पंकज जी की टिप्पणी के प्रकाश में मिसिंग लिंक्स लाए जा सकते हैं।
    'वाद' से अत्यधिक जुड़ाव असहिष्णुता को जन्म देते हैं। जाने क्यों ऐसा आप के ब्लॉग पर आई टिप्पणियों और आप की प्रति-टिप्पणियों में अधिक ही दिखता है? यह भी हो सकता है कि मेरी नज़र में ही समस्या हो।

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  15. @आप महाभारत करना चाहते हैं गिरिजेश जी ....?

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  16. @अब तक ६ नापसंद मिल चुके हैं ..एक आप भी गिरिजेश जी पहले की तरह ठोक आईये !
    कौन कहता है हिन्दी ब्लॉग जगत में कोई दृष्टि नहीं है!

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  17. :) नहीं। ;)
    हालाँकि यह प्रासंगिक नहीं है लेकिन प्रेम और शरीर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। प्रेम का शरीर से उपर होना उदात्तीकरण भले हो लेकिन ऐसे उदाहरण हैं कितने ? जो इतना कम है और इतना विवादास्पद उस पर सिर क्या खपाना ?
    समूची सृष्टि विपरीतलिंगियों द्वारा एक दूसरे के अधूरेपन को पूरा करने से चल रही है। प्रेम सृष्टि के नियमों का प्रारम्भ है और अंत भी - शरीर (मतलब स्थूल आश्रय) ही महत्त्वपूर्ण है, चाहे विपरीतलिंगी हो, लहलहाती फसल हो, कलकल नदिया हो, विराट नभ हो, मेट्रोपोलिश हो ....
    ...तौबा तौबा ! क़ुफ्र की बातें !

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  18. आज कल एक विचार बहुत सता रहा है - पुरुष शरीर पर कविताएँ क्यों नही हैं?
    तुलसी टाइप नहीं ..ऐसी जो बबूल के काँटों का राग रचें, बाहु मांसपेशियों में मचलती मछलियों की रवानी के छ्न्द गढें, मुक्त अट्टाहस में गूँजते प्रलय रव को सुनें सुनाएँ, वक्ष की रोमावलियों पर कोमलता को सँभालती रुक्षता को पखावज नाद दें .. क्यों नहीं हैं?
    ... चलिए इस प्रश्न को अपने कविता ब्लॉग पर रखता हूँ।

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  19. आपका लिखा सोचने पर मजबूर करता है...मुझे तो लगता है कि जो अच्छा लगता है मन वहीँ आकर्षित होता है....

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  20. 'एक अच्छा इंसान कैसे बुरा बन जाता है'..वह कुछ बिंदुओं में ज़ील ने बताया था.मैं ने कहा था की उस पर एक अच्छी जानकारीपूर्ण मनोवैज्ञानिक पोस्ट बन सकती है.
    क्योंकि तभी मैं 'सनसनी 'TV programme देख कर हटी थी..जहाँ पंजाब में एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका का क़त्ल कर दिया था ..वह क्यूँ हुआ होगा...ऐसा मानसिक परिवर्तन क्यूँ आया.
    उस की व्याख्या ज़ील की टिप्पणी कर रही थी.उसी बात पर मैं ने लिखा था की इस विषय एक अच्छी सबकनुमा पोस्ट बन सकती है,ताकि मानसिक रूप से इतना विकृत होने से पहले अगर व्यक्ति स्वयं को पहचान सके तो वहीं रुक सकता है....आत्म विश्लेषण kar sakta है ..सलाह ले सकता है और दो ज़िंदगियाँ तबाह होने से बच सकती हैं.

    आप ने भी इस पर अपने विचार लिखे.लेकिन यह bura परिणाम किसी भी रिश्ते ka हो sakta है ज़रूरी नहीं की प्रेमी प्रेमिका हों या स्त्री और पुरुष.
    अति अधिकारवादी मनुष्य किसी भी संबंध में हो सकता है और जब ऐसा होने लगता है to वही feelings पहली दरार होती है.चाहे वो दो अच्छी सखियाँ ही क्यों ना हों.
    हर संबंध में इंसान अपने लिए थोड़ी खुली स्पेस चाहता है.--
    अच्छे बुरे लोगों की शृंखला में इस विषय को जोड़ कर topic ko एक अलग एंगल दिया है.लेकिन अभी भी यह विषय जैविक नहीं और अधिक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण चाहता है.
    और मेरे विचार में फिलहाल इस विषय को और विस्तार देने से कोई लाभ नहीं.
    यहाँ वहाँ सुनते ही रहते हैं की हिन्दी ब्लॉग्गिंग अभी भी अपने शैशव काल में है.

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  21. जील ने कहा ---A person needs to stop somewhere when the things start slipping from their hands. Usually people realize only after it is too late.
    [- लेकिन व्यक्ति को कैसे मालूम हो कि उसे कहाँ और कब रुकना या रोकना चाहिए.
    इस पर और वैज्ञानिक तथ्यों के साथ लिखा जाना चाहिए.
    --क्या आप जानते हैं ऐसे कई मामले हैं जहाँ आप व्यक्ति के हाव भाव,actions , उसकी बातों से अंदाजा लगा सकते हैं कि वह कोई गुनाह करने वाला है या ख़ुदकुशी करने वाला है.
    ऐसा व्यक्ति अगर खुद अपने एक्शन को समझे या कोई उसे समझाए तो एक अपराध रुक सकता है.
    बहुत बार सिर्फ एक बार बात कर लेने से भी ऐसा संभव है, लेकिन उस के लिए जानना और पहचानना ज़रुरी है कि उस में खुद या दूसरे में कब और कैसे लक्षण दिख रहे हैं.
    -इस पर मैं कह रही थी कि विषय को विस्तार की ज़रूरत है,लेकिन मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से .
    ------

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  22. Respected Arvind ji,

    I have expressed most of my views/opinion/concepts and beliefs in your previous posts already.

    As far as good and bad people are concerned, there are million genetic combinations . No two persons can be same on earth.Between Good and Bad, there are innumerable possible types of people exist.

    Being a lover by nature , i love all shades of life and all kind of people. I love to imbibe the beauty in everyone. Alone i am nothing , so i try to get what others have and i lack.

    We cannot have all the four feet 'white' of a horse. So we should try to be happy with whatever quality we find as appealing in someone.

    We all have some or the other reason to be liked and loved, admired and adored by others. Its human nature. The soul in us prompts us to meet and explore the new soul , just in want of love.

    I respect all the bloggers here for varied reason. Sangeeta ji, Sadhna ji , Asha ji for their innocent writings. Mukti ji for her bindaas writing without any pretense. Ada ji for her courageous writing. Sujata ji and Rachna ji for their calibre to call spade as spade. Dineshrai dwiwedi ji and Sameer ji for his wisdom, Girijesh ji and Amrendra ji for his logics,Pabla ji for his loving n caring attitude, Alpana and Vani ji for their Maturity, Arvind ji for his inquisitiveness, Ajay Ojha ji and Ali ji for their wits, Mehfooz ji for his calm and composure, Himanshu ji for his sweetness,Kazal ji for his uniqness in cartoons, Gyan and Praveen ji for their sincerity.

    And i love myself for my transparency in attitude.

    Usually people prefer sweet talks, flattery , appreciations. They are pampered and spoiled by friends.Their expectations rise very high and they get disappointed very soon. This leads to break ups and later on accusations, hostility and rivalry. but this cannot make a person 'bad'. It is just a person's ignorance and nothing else.

    As far as attraction towards opposite sex is concerned, it is a very natural phenomenon and undebatable. It is all because our entirely different genetic combination [ XX and XY ].Hormones play their respective roles in it. By the way -"Opposite attacts"

    Lets Be thankful to almighty that we are normal and heterosexuals. So, its fine to be naturally attracted to the opp sex.

    Concluding it by saying that goodness and evil is relative. People's reaction are more governed by their personal experiences and circumstances they are living in.Our ignorance at times makes us fall in friend's eyes.

    Finally-

    "Jaaki rahi bhavana jaisee, prabhu murat tin dekhi taisee"

    regards,
    Divya

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  23. Blogger राज भाटिय़ा said...

    अरे अर्विंद जी आप भी ना इस जील की वास्त्विकता ही किसी को मालूम नही, फ़िर भी उसे क्यो तुल दे रहे है, जो मुंह छुपा कर बात करे उस से क्या बहस.... छोडिये इन्हे ओर मस्त मोला बानिये वर्ना यह दुनिया तो सांस भी लेने नही देगी..... कोई मुझे बुरा कहे उस से पहले उसे अपने दामन मै झाकनां चाहिये, यहां लोग अनामी बेनामी बन कर ओर गंदगी फ़ेला रहे है, इन से क्यो डरे????

    Respected Raj Bhatia ji-

    I am not Benami. I did my schooling from Loreto convent Lucknow. Medical graduation from BHU. Specialization from KGMC [King George Medical College]. Before leaving India, I was posted at Dr.Shyama Prasad Mukherjee, civil hospital , Park Road Lucknow. I am married to an engineer , who is AVP in a company here in Bangkok.

    I do not have profile because i am not interested in social networking. I want to remain aloof and detached from everyone. Because attachment makes a person biased and takes away his /her personal space.

    Above all, i do not want people to know my personal details. Being a woman, i fear a lot.

    I am not a blogger.....occasionally i comment on few blogs...My comments are important and not my profile.

    If my comments are useless, then my profile is sheer waste.

    Respected Bhatia ji,
    If you are offended by anything mentioned here or in my previous comments, then i apologise with folded hands.

    Please pardon my ignorance.

    "To err is human, to forgive is divine"

    Regards,
    Divya

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  24. सुपर प्रोग्रामिंग का करिश्मा है सब

    बी एस पाबला

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  25. @,@- मनुष्य में यह लैंगिक चयन नारी के मामले में भावी संतति /वंशबेलि के नैरन्तर्य से जुडा है ...लैंगिक चयन भावी संतति के लिए ही है तो इसमें आकर्षण ही कहाँ रहा ...प्रेम की बात तो भूल ही जाएँ ...दिलों का खेल/प्रेम का संतति के लिए चयन से कोई सम्बन्ध मुझे समझ नहीं आ रहा ...प्रेम शरीर से बहुत ऊपर/अलग चीज़ है ..

    I fully agree with Vani ji.

    One must not forget about nine emotions. Out of these nine emotions..."Vaatsalya', 'Karuna' and 'Shringaar' are related with love. Furthermore 'Vaatsalya' and 'Karuna' has nothing to do with bodily pleasures.

    Mother Teressa is epitome of Love-The emotion involved is Karuna. She loved everyone irrespective of gender.

    Now let's talk of Mothers (maa, mata). A mother loves her children, irrespective of gender. The emotion involved is 'Vaatsalya'.A child spends nine months in womb and while taking birth, he/she comes out through cervix, travels through vagina and later on for next two years he sucks nipples for breast feed. But does he ever look at his mother with any vile feeling or for her body?...NO !...The bond between the two is absolute love, the purest form of love. The Vaatsalya-love.

    Now coming to Shringaar-love. Here comes the attraction between opposite sexes. Till the attraction is limited to souls and mind and heart, it is platonic and is indeed said to be love.

    If the two gets into bodily pleasures, the love ends and the dependance and addiction begins. Its kinda hunger in a person which comes into play. At this juncture the two become so selfish and they try to sate their biological needs. So one must not associate love with anything physical.

    Love is emotional need which is entirely different from biological need.

    @-प्रेम सृष्टि के नियमों का प्रारम्भ है और अंत भी ...

    Girijesh ji,

    Love begins, but it never ends. Love is an endless journey.

    Like the soul never dies .It keeps changing the body. Like we change the glasses but we pour the same water.Similarly, break-ups are possible between two lesser mortals, who by chance came close. And when the spell was broken they parted. But the search for love is eternal. The soul inside us compels us to reach out to someone more caring and understanding and connect again. It is like a cycle of Jeevan and Mrityu.

    During the phase of attachment and parting, we learn and experience a lot. That's all life is about.

    Detachment ( vairaag) is the solution. An enlightened soul is free from such mirages.

    It is all my humble opinion only.Nothing authentic.Kindly pardon me for any inadvertent error.

    Thanks.

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  26. जो जैसा हैं उसको वैसा ही स्वीकार कर ले क्युकी सब आप जैसे नहीं हो सकते । जब स्वीकारोक्ति का आधार मित्रता , लेगिकता , अपने निज के स्वार्थ होते हैं तो ना पसंद होने के दायरे ज्यादा होते हैं । क्या कोई भी ये बात दावे से कह्सकता हैं कि जो आपके लेखन की तारीफ़ मे कमेन्ट करता वो ही आप कि पोस्ट पर ना पसदं का चटका नहीं लगा रहा हैं । किसी को गलत साबित करना उसको ना पसंद करना नहीं होता हैं । बहस एक वाद विवाद प्रतियोगिता मात्र हैं और जीतना मकसद होना चाहिये लेकिन सही रास्ते से । कितने हैं जो सही रास्ते पर चलते हैं ???
    हर रिश्ता केवल और केवल स्त्री -पुरुष मे ही सिमट कर रह जाए तो इंसान बनाने का सफ़र अधुरा होगा । अगर स्त्री - पुरुष का आकर्षण हर परेशानी का कारण हैं तो इस आकर्षण से ऊपर उठ कर रिश्तो मे मानवता कि तलाश ज्यादा जरुरी हैं ना कि स्त्रीलिंग और पुल्लिंग को हर बार नये तरह से परिभाषित करना । पसंद और ना पसंद का कोई लेना देना स्त्री या पुरुष से नहीं हैं और ना ही धरती का हर पुरुष और स्त्री केवल और दैहिक आकर्षण से ही एक दूसरे से बंधे हैं । ये सोच बहुत छोटी हैं कम से कम ब्लॉग पर । अगर प्रोफाइल पर ये ना दिया हो कि आप का गेंदर और नाम क्या हैं तो कौन जानता हैं आप को । ब्लॉगर शब्द बना ही इसीलिये था ।
    प्रेम मे असफल लोग सब क्रिमिनल नहीं होजाते हैं , प्रेम का असली स्वरुप असफल होने मे ही हैं । जो पा लिया वो प्यार नहीं होता क्युकी प्यार पाने का नहीं देने का नाम हैं

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  27. आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! बहुत विचारणीय आलेख! उम्दा प्रस्तुती!

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  28. @ दिव्या जी,

    -प्रेम सृष्टि के नियमों का प्रारम्भ है और अंत भी ...
    इस वाक्य में प्रारम्भ और अंत नियमों के लिए प्रयुक्त हुए हैं, प्रेम के लिए नहीं।
    नियमों के अंत में भी प्रेम रहता है। ..बच जाएगा बस प्रेम ।

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  29. Girijesh ji ,
    मुझे याद है हम लोग तब किशोरावस्था में थे -एक बड़ी उम्र के सज्जन से बहस हो गयी
    टापिक था -वासना प्रेम का उत्कर्ष है यह उनका कहना था
    हम लोग हतप्रभ -
    हमारा मत था -
    नहीं ,
    प्रेम वासना का उत्कर्ष है
    सोचता हूँ आज भी बच्चा ही हूँ मैं

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  30. @ Girijesh ji-

    Shayad samajhne mein mujhse kuchh mistake ho gayee. Main aapka aashay nahi samajh saki.

    kshma-praarthee hun.

    जवाब देंहटाएं
  31. आप सभी ने एक अच्छा सच्चा विवेचन किया विषय का ..कुछ लोगों ने यह कह कर की विषय असम्बद्ध है किनारा किया .रचना जी ने बाद में बड़ी संतुलित और विचारणीय टिप्पणी की ...जील ने बहुत कुछ कहा ,कुछ ब्लॉग ओनर की ताराफ से जो छूट रहा था उसे भी -सभी को धन्यवाद देना धन्यवाद की देने की अनुभूति को कम करना ही होगा ...विषय जटिल है -कभी कभी आश्चर्य होता है की कुछ विषय ऐसे क्यों हैं जिन पर मानव् मतैक्य नहीं है ...कुछ गलतफहमियां भी हुयी हैं इस पोस्ट के चलते ..और यह मेरे साथ होता ही आया है लोई नयी बात नहीं है ...मुझे दुःख तो है मगर फ़िक्र ज्यादा नहीं ...कालोवधि निरवधि ..विपुलांच पृथ्वी !

    जवाब देंहटाएं
  32. @ Arvind ji-

    Thanks to you too for a fine discussion.

    @-...कालोवधि निरवधि ..विपुलांच पृथ्वी !

    I will appreciate if you kindly translate the above quote in Hindi.

    जवाब देंहटाएं
  33. @Zeal
    समय निरवधि है और धरती विपुल /विशाल लम्बी चौड़ी ....
    time is limitless and earth is vast !
    पूरा श्लोक भवभूति का है -
    उपत्स्यते कोपि समान धर्मा
    कालोवधि निरवधि विपुलांच पृथ्वी
    कोई न कोई तो कभी मुझे समझने वाला होगा
    काल निरवधि है और पृथ्वी अपरिमित (विशाल )
    हम प्रतीक्षा करते हैं .....कोई जल्दी नहीं है

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  34. Thanks for the translation .

    Its a beautiful expression !

    जवाब देंहटाएं
  35. Arvind ji, Saadar pranaam. Mera simple sa parichay hai, my ek Kalaakaar hoon, (Shaastriya sangeet mein Violin seekh raha hoon) Aur blog mein ekdum bacchaa.

    My message to all here is:
    "Gunvanntaa na Janiyo, janiyo Bhaagvantaa, Kyun ki Gunavantaa ke Durbaar mein, Padey rahey Saarey Gunvantaa"
    Namaste.

    जवाब देंहटाएं
  36. Samay/Time ke baarey mein sunaa hai "Kalanaattmaka Iti Kaalah" -- Time is the outcome of Computation" If we don't compute it, Time isn't present. It is brought into being ness only when we try to compute it, hence it is neither Cyclic nor linear. In the Collossal time, our existence on Earth and the size of Earth is relatively VERY miniscule. So, everything is widely subjective. However, your views are superb and I enjoyed every word written on this blog by each and every contributor. Keep the great job up. Namaste

    जवाब देंहटाएं
  37. Thank you, that was extremely valuable and interesting...I will be back again to read more on this topic.

    जवाब देंहटाएं
  38. Thanks for sharing the link, but unfortunately it seems to be down... Does anybody have a mirror or another source? Please reply to my post if you do!

    I would appreciate if a staff member here at mishraarvind.blogspot.com could post it.

    Thanks,
    John

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    Charlie

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