रविवार, 16 मई 2010

जाति न पूछो साधु की ...

आज से उत्तरप्रदेश में भी जातिवार जनगणना शुरू हो गयी ..मतलब जाति पाति पर एक और सरकारी मुहर ....आधुनिक आनुवंशिकी कहती है कि मनुष्य  -मनुष्य का जेनेटिक  फर्क एक फीसदी से भी कम का है मगर आज समूची मनुष्यता धरम  करम  सम्प्रदाय और जाति बिरादरी के नाम पर कितना बटी हुई है ...और हम अपने चेतन अवचेतन कृत्यों से इस अंतर को पहाड़ सा बनाए जा रहे है ...मुझे याद है बचपन में यानि आज से चालीस वर्ष पहले जाति पात का फर्क कुछ कम हो चला था ...चौधरी चाहें वे अहीर चौधरी हो या हरिजन ब्राह्मणों के घर दरवाजे आकर बोलने  बतियाने लगे थे -लग रहा था कि संकीर्णताएँ मिट चली हैं ..मगर तभी आरक्षण का राजनीतिक जिन्न उठ खड़ा हुआ और फिर से जातिवादी सोच ,विलगाव ,घृणा -दोष की वापसी होने लगी ..और परम्परावादी विचारधारा सरणियाँ तो सूखती  कभी नहीं बस सरस्वती सा लुप्त हुईं रहती हैं  -मौका पाते ही अपना फन  उठा देती हैं...

मुझे अच्छी तरह याद है मैं गणित पढने अपने गांवं की  एक हरिजन बस्ती में एक कुशाग्र छात्र रामसेवक के पास जाता था ...जो आजकल दिल्ली में दूर संचार विभाग के एक आला अफसर हैं ..मेरे मन  में कहीं कोई भाव नहीं था ...पिता जी को कुछ पुरनियों  ने टोका भी कि आपका लड़का बर्बाद हो गया है जो चमरौटी में पढने जाता है ..मेरी जब आयेदिन जोरदार शिकायत होने लगी तो एक दिन मैंने सुना पिता जी सख्त अंदाज में कह रहे थे-वह वहां शिक्षा  लेने जाता है और शिक्षा कहीं से भी ,जहां  से भी मिले लेने में कोई बुराई नहीं है ....मैं रामसेवक जी का क़र्ज तो इस जन्म में चुका नहीं पाऊंगा जिनकी बदौलत ही मैं गणित में हाईस्कूल में पास हो सका ...बचपन से ही मेरे मन में जातिपात को लेकर कोई द्वैत  भाव नहीं रहा और अपनी विश्वविद्यालयी शिक्षा तक मेरे मन में  जातिपात-विचार आते ही नहीं थे....मगर नौकरी पाने के बाद मुझे गहरे आघात लगे जब सेवा में मुझसे कनिष्ठ (हरिजन) साथी  को दो प्रोन्नतियां  दे दी गयीं -और अनेक मेरे सहधर्मी भी इसी पीड़ा से गुजरे और गुजर रहे हैं ....पहली बार लगा, ब्राह्मण होना गुनाह है ! मैं हरिजन होता और  मुझे इसमें कोई उज्र न तब था न आज है तो मैं भी निश्चित ही और  ऊंचे पद पर होता ....यह एक जातिवादी राजनीतिक आरक्षण  नीति थीं जिसने योग्यता पर जाति का पहरा बैठा दिया .

मुझे आज भी जाति पात पसंद नहीं है ..मैं योग्यता का लिहाज करता हूँ ,सम्मान करता हूँ .यदि ब्राह्मण के घर पैदा होकर भी कोई ज्ञान के प्रति और जीवन के अच्छे मूल्यों के प्रति   आग्रही नहीं है तो मैं उसे कोई तवज्जो नहीं देता और हरिजन यदि विद्वान हो तो उसके चरण भी छूने  में मुझे कतई संकोच  नहीं है ...मगर राजनीतिक कारणों से जाति पर बार बार मुहर लगाते जाना मुझे कष्ट पहुंचाता है -इससे हम बट रहे हैं .राजनीति की बिसात पर सामाजिक सामंजस्य और समरसता की ऐसी की तैसी हो रही है ....जिन प्रतिगामी मूल्यों को हम भूल चले थे वे अब और प्रबलता  के साथ हम पर हावी हो  रही हैं ..इस विषैले माहौल से बंचने का कोई रास्ता है क्या ? 

जातिगत सोच का एक घिनौना रूप हमारे सामने है - आज बेचारी बच्चियां इसलिए मार दी जा रही हैं कि उन्होंने किसी गैर जाति के प्रेमी से मन लगा लिया ....क्या हम तनिक भी सभ्य हुए हैं ? जातिगत चिंतन हमारे समाज को ले डूबेगा ....इसके मूलोच्छेदन की जरूरत है न कि इसे प्रोत्साहित करने की .....व्यक्ति अच्छा बुरा हो यह हमारा मापदंड होना चहिये जाति तो कदापि नहीं  -व्यक्तिगत श्रेष्ठता ही अभीष्ट हो हमारा, हर आकलन और पैमाने पर, मुझे किसी ऐसे ही समाज की प्रतीक्षा रहेगी ......आईये इसलिए हम मिलकर  कदम बढायें ...



25 टिप्‍पणियां:

  1. जात पात पूछे नहीं कोई , हरी को भजे सो हरी का होई . ये पंक्तिया अपना अर्थ खो चुकी है आज के जातिवादी समाज में , और जातिवादी आरक्षण हमारे पहले से भी जातिगत आधार पर विभक्त समाज के लिए नासूर है

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी ये पोस्ट एक सही दिशा की ओर इंगित करती है...ना जाने कितने लोगों ने ये जाति की त्रासदी झेली होगी...सक्षम होते हुए भी पदोन्नति का ना होना...ये सरकारी सेवा में आम बात है.पर कितना क्रूर है इसका अंदाजा नहीं है लोगों को.
    जातिवाद ने देश को बांटने का काम किया है...यदि आरक्षण देना है तो बस दो ही वर्ग निर्धारित होने चाहिए...गरीब वर्ग और अमीर वर्ग ..

    सार्थक लेख

    जवाब देंहटाएं
  3. Aage badhne ke bajay ham peechhe hat rahe hain..watanke patan ki or...sach kaha,ekjut ke bina aur koyi upay nahi.

    जवाब देंहटाएं
  4. @यदि ब्राह्मण के घर पैदा होकर भी कोई ज्ञान के प्रति और जीवन के अच्छे मूल्यों के प्रति आग्रही नहीं है तो मैं उसे कोई तवज्जो नहीं देता और हरिजन यदि विद्वान हो तो उसके चरण भी छूने में मुझे कतई संकोच नहीं है....

    व्यक्ति अच्छा बुरा हो यह हमारा मापदंड होना चहिये जाति तो कदापि नहीं -व्यक्तिगत श्रेष्ठता ही अभीष्ट हो हमारा....

    ऐसा ही होना चाहिए ....ऐसा ही हो ....!!

    जवाब देंहटाएं
  5. अब तो सरकारी मुहर लगने जा रही है -क्या किया जाय---
    देश की राजनीति और उसे दिशा देने वाले लोग अपनें सत्ता मोह में समाज को नष्ट कर रहे हैं..आज बढती जातिवादी सोच से हर बुद्धिजीवी त्रस्त है.

    जवाब देंहटाएं
  6. मुहर तो बहुत पहले लग चुकी । अब क्या करें ?
    आपके विचार सही हैं अरविन्द जी ।

    जवाब देंहटाएं
  7. वर्णाश्रम व्यवस्था के प्रति श्रद्धा है, पर जाति के कुटिल रूप को तो दूर से नमस्कार!

    जवाब देंहटाएं
  8. मात्र योग्यता ही मानक हो सम्मान का । पर पता नहीं यह राजनीति कितना अहित करेगी समाज का ।

    जवाब देंहटाएं
  9. इन नेताओ ने जात पात पर जितना जहर घोला है, शायद उतना है नही,्मेरे बहुत से मित्र है जिन की जात मैने आज तक नही पुछी, नाम से धर्म का पता चलता है, वरना हमे किसी के धर्म का भी पता ना चले,इस लिये अब जनता को आम आदमी को इस बारे जगरु होना चाहिये ओर इन कपटियो की चाल मै नही आना चाहिये, इस माया ने कोन सा ऎसा काम किया है जिस से इन दलित लोगो का पेट भर जाये, उन के सर पर छत बन जाये, सर भी तभी ऊंचा होता है जब पेट मै रोटी हो, सीधा खडे होने की हिम्मत हो, इस लिये इस जात पात को भुल जाओ ओर मिल कर रहो

    जवाब देंहटाएं
  10. जिसके स्वार्थ पर आघात होता है वह या तो जाति का समर्थक हो जाता या फिर विरोधी, जिससे उसे लाभ होता हो. यह तय कि जाति खून से जाने वाली नहीं. इस ब्लाग का संदर्भ और टिप्पणियां ही देख लें उदाहरण के लिए .

    जवाब देंहटाएं
  11. राजनित जो न करवा दे...जाने क्या विचार होता है

    जवाब देंहटाएं
  12. आपकी बातें सही हैं. सभी लोग ये मानते हैं कि योग्यता ही किसी भी व्यक्ति के उच्च सेवाओं में चयन और पदोन्नति का आधार होनी चाहिए. आरक्षण की नीति के प्रभाव की भुक्तभोगी मैं भी रही हूँ जब ठीक मेरे जितने नंबर आई.ऐ.एस. मेंस में पाकर मेरी एक जूनियर चयनित हो गयी और मेरा चयन नहीं हुआ. थोड़ा दुख तो हुआ क्योंकि मैं भी भगवान तो हूँ नहीं कि इन सब बातों से ऊपर उठ जाऊं...पर फिर मन को समझा लिया. कुछ विसंगतियाँ ज़रूर हैं इस नीति में, लेकिन ये नीति "रिवर्स डिस्क्रिमिनेशन" के सिद्धांत पर आधारित है, जिसका अर्थ ये है कि जो सदियों से दलित हैं, उन्हें कुछ अधिक सुविधाएं देकर बराबरी पर लाने का प्रयास किया जाए.
    रही बात इस नीति के कारण जातिगत भेदभाव बढ़ने की, तो ये बात कुछ हद तक सही भी है कि पिछडों के आरक्षण के लिए मंडल कमीशन की रिपोर्ट के बाद से इसका प्रभाव बढ़ा है, पर अकेले उसे ही दोष देना उचित नहीं है. जातिभेद तब तक नहीं मिटेगा जब तक रोटी-बेटी का सम्बन्ध शुरू नहीं होता --ये बात डॉ. अम्बेडकर ने बहुत पहले समझ ली थी. अगर हम इसे दूर करना चाहते हैं तो प्रेम विवाह को सामाजिक स्वीकृति देनी होगी और दकियानूसी बातों से ऊपर उठना होगा.
    खाली आरक्षण नीति को कोसने से कुछ नहीं होगा.

    जवाब देंहटाएं
  13. महिलाओं में श्रेष्ठ ब्लागर कौन- जीतिए 21 हजार के इनाम
    पोस्ट लिखने वाले को भी मिलेगी 11 हजार की नगद राशि
    आप सबने श्रेष्ठ महिला ब्लागर कौन है, जैसे विषय को लेकर गंभीरता दिखाई है. उसका शुक्रिया. आप सबको जलजला की तरफ से एक फिर आदाब. नमस्कार.
    मैं अपने बारे में बता दूं कि मैं कुमार जलजला के नाम से लिखता-पढ़ता हूं. खुदा की इनायत है कि शायरी का शौक है. यह प्रतियोगिता इसलिए नहीं रखी जा रही है कि किसी की अवमानना हो. इसका मुख्य लक्ष्य ही यही है कि किसी भी श्रेष्ठ ब्लागर का चयन उसकी रचना के आधार पर ही हो. पुऱूषों की कैटेगिरी में यह चयन हो चुका है. आप सबने मिलकर समीरलाल समीर को श्रेष्ठ पुरूष ब्लागर घोषित कर दिया है. अब महिला ब्लागरों की बारी है. यदि आपको यह प्रतियोगिता ठीक नहीं लगती है तो किसी भी क्षण इसे बंद किया जा सकता है. और यदि आपमें से कुछ लोग इसमें रूचि दिखाते हैं तो यह प्रतियोगिता प्रारंभ रहेगी.
    सुश्री शैल मंजूषा अदा जी ने इस प्रतियोगिता को लेकर एक पोस्ट लगाई है. उन्होंने कुछ नाम भी सुझाए हैं। वयोवृद्ध अवस्था की वजह से उन्होंने अपने आपको प्रतियोगिता से दूर रखना भी चाहा है. उनके आग्रह को मानते हुए सभी नाम शामिल कर लिए हैं। जो नाम शामिल किए गए हैं उनकी सूची नीचे दी गई है.
    आपको सिर्फ इतना करना है कि अपने-अपने ब्लाग पर निम्नलिखित महिला ब्लागरों किसी एक पोस्ट पर लगभग ढाई सौ शब्दों में अपने विचार प्रकट करने हैं। रचना के गुण क्या है। रचना क्यों अच्छी लगी और उसकी शैली-कसावट कैसी है जैसा उल्लेख करें तो सोने में सुहागा.
    नियम व शर्ते-
    1 प्रतियोगिता में किसी भी महिला ब्लागर की कविता-कहानी, लेख, गीत, गजल पर संक्षिप्त विचार प्रकट किए जा सकते हैं
    2- कोई भी विचार किसी की अवमानना के नजरिए से लिखा जाएगा तो उसे प्रतियोगिता में शामिल नहीं किया जाएगा
    3- प्रतियोगिता में पुरूष एवं महिला ब्लागर सामान रूप से हिस्सा ले सकते हैं
    4-किस महिला ब्लागर ने श्रेष्ठ लेखन किया है इसका आंकलन करने के लिए ब्लागरों की एक कमेटी का गठन किया जा चुका है. नियमों व शर्तों के कारण नाम फिलहाल गोपनीय रखा गया है.
    5-जिस ब्लागर पर अच्छी पोस्ट लिखी जाएगी, पोस्ट लिखने वाले को 11 हजार रूपए का नगद इनाम दिया जाएगा
    6-निर्णायकों की राय व पोस्ट लेखकों की राय को महत्व देने के बाद श्रेष्ठ महिला ब्लागर को 21 हजार का नगद इनाम व शाल श्रीफल दिया जाएगा.
    7-निर्णायकों का निर्णय अंतिम होगा.
    8-किसी भी विवाद की दशा में न्याय क्षेत्र कानपुर होगा.
    9- सर्वश्रेष्ठ महिला ब्लागर एवं पोस्ट लेखक को आयोजित समारोह में भाग लेने के लिए आने-जाने का मार्ग व्यय भी दिया जाएगा.
    10-पोस्ट लेखकों को अपनी पोस्ट के ऊपर- मेरी नजर में सर्वश्रेष्ठ ब्लागर अनिवार्य रूप से लिखना होगा
    ब्लागरों की सुविधा के लिए जिन महिला ब्लागरों का नाम शामिल किया गया है उनके नाम इस प्रकार है-
    1-फिरदौस 2- रचना 3-वंदना 4-संगीता पुरी 5-अल्पना वर्मा- 6 –सुजाता चोखेर 7- पूर्णिमा बर्मन 8-कविता वाचक्वनी 9-रशिम प्रभा 10- घुघूती बासूती 11-कंचनबाला 12-शेफाली पांडेय 13- रंजना भाटिया 14 श्रद्धा जैन 15- रंजना 16- लावण्यम 17- पारूल 18- निर्मला कपिला 19 शोभना चौरे 20- सीमा गुप्ता 21-वाणी गीत 21- संगीता स्वरूप 22-शिखाजी 23 –रशिम रविजा 24- पारूल पुखराज 25- अर्चना 26- डिम्पल मल्होत्रा, 27-अजीत गुप्ता 28-श्रीमती कुमार.
    तो फिर देर किस बात की. प्रतियोगिता में हिस्सेदारी दर्ज कीजिए और बता दीजिए नारी किसी से कम नहीं है। प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम तारीख 30 मई तय की गई है.
    और हां निर्णायकों की घोषणा आयोजन के एक दिन पहले कर दी जाएगी.
    इसी दिन कुमार जलजला का नया ब्लाग भी प्रकट होगा. भाले की नोंक पर.
    आप सबको शुभकामनाएं.
    आशा है आप सब विषय को सकारात्मक रूप देते हुए अपनी ऊर्जा सही दिशा में लगाएंगे.
    सबका हमदर्द
    कुमार जलजला

    जवाब देंहटाएं
  14. आशा है आप अपनी ऊर्जा सही दिशा में लगाएंगे :)

    जवाब देंहटाएं
  15. सरस्वती बाल विद्या मन्दिर में आचार्य जी लोग हर जाति से थे। हमलोग सबके पैर छूते थे - विद्यालय के बाहर भी मिलने पर । डर नहीं, संस्कारों के कारण - घर और स्कूल दोनों जगह बताए सिखाए जाते थे।
    .. यह व्यवस्था बहुत जटिल है। आचार्य लोग सुशिक्षित थे और उस युग(?) में शिक्षकों का सम्मान था। उन्हीं लोगों के घरों के अन्य बड़ों को हमलोग शायद वह सम्मान नहीं दे पाते।
    इस व्यवस्था में हर जाति अपने से नीची जाति ढूँढ़ लेती है। बेटे/बेटी का रिश्ता पंडित जी या बाबू साहब मुनरा के यहाँ नहीं करेंगे लेकिन यादो जी भी नहीं करेंगे। अब बेटे/बेटियों को छोड़ दिया जाय इस काज के लिए लेकिन क्या उससे चमटोली या पसियाना या दुसाधपट्टी की स्थिति पर कुछ असर पड़ेगा? ... इस देश की ज़रूरत सबको बराबर अवसर और सुविधाएँ मुहैया कराने की है न कि रिजर्वेशन की। इस काम में राज्य भयानक रूप से असफल हुआ है। इसने दलितों में भी एक अलग एलीट क्लास खड़ा किया है बस। और इस एलीट क्लास में अपने जाति भाइयों के लिए गाँव के बाबू साहब से भी कम सहानुभूति है।.. ढेर सारा लिख जाऊँगा - उलूलजुलूल उल्लू सा इसलिए विराम ।

    जवाब देंहटाएं
  16. एकलव्य को द्रोणाचार्य ने शिक्षा नहीं दी... मैं सोचता हूँ मान लीजिये उसने घोर तपस्या कर ब्राह्मण कुल मांग लिया ! और आज के जमाने में वो ब्राह्मण कुल में पैदा हो गया.... एकलव्य तब भी दुखी था आज भी दुखी है. घाटा तो प्रतिभा को ही होता है... फायदा किसी को हो न हो.

    जवाब देंहटाएं
  17. @ पाण्डेय जी
    वर्णाश्रम के हिसाब से तो आप शुद्र हुये . सेवा कार्य करने वाले शुद्र

    जवाब देंहटाएं
  18. आपके विचारों से पूर्ण सहमति है. [राजा मांडा की नौटंकी का कोई ज़िक्र नहीं]
    विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनी
    शुनिचैव श्वपाके च पंडिता समदर्शिनः [गीता]

    जवाब देंहटाएं
  19. @ गिरिजेश राव
    आचार्य लोग सुशिक्षित थे और उस युग(?) में शिक्षकों का सम्मान था। उन्हीं लोगों के घरों के अन्य बड़ों को हमलोग शायद वह सम्मान नहीं दे पाते।

    महाराज की जय हो. बहुत बड़ी बात कह दी है. बहुत लोगों को जातिवाद (या कोई भी बुराई) तभी चुभता है जब उससे अपना नुक्सान हो. ये परदे कब हटेंगे?

    जवाब देंहटाएं
  20. उम्दा पोस्ट.
    ,,अभिषेक जी की टिप्पणी आरक्षण के दंश को अच्छे से अभिव्यक्त करती है..
    ..एकलव्य तब भी दुखी था आज भी दुखी है.

    जवाब देंहटाएं
  21. बिलकुल आपसे ही सोच हैं मेरे और इस आलेख में जैसे आपने मेरे ही विचारों को शब्द दे दिया है...बहुत बहुत आभार इस उपयोगी आलेख के लिए...

    वस्तुतः किसी भी जाती या सम्प्रदाय के नेता क्यों न हों,उन्हें पता है की बिना फूट डाले विद्वेष फैलाये वे अपनी लूट की राजनीती चलने में सफल न हो पाएंगे...इसलिए धर्म भाषा क्षेत्र आधारित आरक्षण का आधार वे लिए हुए हैं...यह राजनीति का सबसे घृणित और कुत्सित रूप है...इसे नकार कर ही हम समाज को स्वस्थ और एकजुट रख पाएंगे...

    जवाब देंहटाएं
  22. पर अफसोस, सारे इंतजाम जातिवाद बढ़ानेवाले ही किये जा रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  23. धर्म तक ठीक है... अब जातियां में कम से कम ओफिसिअली तो मत बांटो.. फिर सबका वोट बैंक.. फिर वही ओछी राजनीती :(

    वाणी जी से सहमत..

    जवाब देंहटाएं
  24. आपने वेदना हम जैसे अनेक सवर्ण कहलाने वाले वेदना को उद्घाटित करती है............लेख पढकर अपनापन सा महसूस हुआ.

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव